दिल्ली के लेबर चौकों पर पानी का बुनियादी हक हासिल करने की एक कोशिश

हर दिन, सुबह-सुबह हजारों लोग दिहाड़ी की तलाश में दिल्ली के अलग-अलग लेबर चौकों पर इकट्ठे होते हैं। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है, गर्मी बढ़ती जाती है। फिर भी ये श्रमिक धूप में खड़े होकर घंटो इंतजार करते हैं। इस दौरान उन्हें भीषण गर्मी से निपटने के लिए पीने का पानी खरीदना पड़ता हैं, जिसमें उनके रोजाना 100 रुपए तक खर्च हो जाते हैं। औसतन 650 रुपए की दैनिक मजदूरी कमाने वाले यह श्रमिक पहले से ही अनिश्चित रोजगार और आय की समस्या से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में उनके लिए यह अतिरिक्त खर्च एक बड़ा बोझ है।
दिल्ली में गर्मियों के दौरान जगह-जगह सार्वजनिक प्याऊ बनाने की परंपरा रही है, जो अब तेजी से खत्म होती जा रही है। ये प्याऊ लोगों के लिए सुलभ और खुली जगहों पर लगाए जाते थे और इनका रखरखाव आसपास के दुकानदार, व्यापारी संघ, समाजसेवी संस्थाएं या स्वयंसेवक करते थे। लेकिन अब साफ-सफाई से जुड़ी चिंताओं और संक्रमण के जोखिम का हवाला देते हुए, स्थानीय प्रशासन अमूमन इनकी अनुमति देने से हिचिकिचाता है।
इसके अलावा भी कई वजहें हैं जिनके चलते सार्वजनिक प्याऊ हटाए गए हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर-पूर्वी दिल्ली की दिलशाद कॉलोनी स्थित लेबर चौक पर पहले एक प्याऊ होता था। कुछ साल पहले, एक स्थानीय दुकानदार ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से शिकायत कर दी कि लोग प्याऊ के आसपास पानी गिराते हैं, जिससे उनकी दुकान के बाहर कीचड़ जमा हो जाता है। इसके लिए दुकानदार ने एक औपचारिक आवेदन दिया और नगर निगम ने कारवाई करते हुए प्याऊ हटा दिया।
हमारा संगठन बस्ती सुरक्षा मंच अन्य सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर दिल्ली नगर निगम को यह समझाने की कोशिश की कि प्याऊ एक जरूरत हैं। हमने उन्हें अपना मॉडल समझाया, जिसके तहत हमने दिल्ली में जगह-जगह वॉटर एटीएम लगाने की बात कही। हमने बताया कि वॉटर एटीएम में लोहे के ढक्कन वाले बर्तन होंगे, जिन्हें लोहे की जाली में ही रखा जाएगा और उस पर ताला लगा होगा। इसकी चाबी एक स्थानीय दुकानदार के पास रखी जाएगी और बर्तन तभी खुलेंगे जब दिल्ली जल बोर्ड उन्हें भरने के लिए आएगा। लेकिन उस समय स्थानीय पार्षद ने इस सुझाव को खारिज कर दिया।
बाद में हम नई सीमापुरी में एक वॉटर एटीएम लगाने में सफल हुए, जो आज दिलशाद कॉलोनी के ठीक सामने है। इसके लिए हमने स्थानीय विधायक से मुलाकात की और उन्हें अपनी योजना बताई। विधायक ने एमसीडी से प्याऊ लगाने की अनुमित हासिल करने में हमारी मदद की। हम सीमापुरी इलाके में चार अलग-अलग जगहों पर अस्थायी वॉटर एटीएम लगा चुके हैं।
दो बर्तनों वाले एक वॉटर एटीएम को लगाने में 7,500 रुपए और तीन बर्तनों के लिए 11,000 रुपए का खर्च आता है। हर बर्तन 40 लीटर का होता है, जिसे दिन में चार बार भरने की जरूरत पड़ती है। चार में से तीन जगहों पर पहले से ही पानी की सप्लाई चालू थी। इन जगहों पर स्थानीय दुकानदारों ने खुद ही पाइप उपलब्ध करवाए और दिल्ली जल बोर्ड की नल आपूर्ति के दौरान पानी भरने का इंतजाम कर, इस पहल में सहयोग दिया है।
वहीं, हमें नई सीमापुरी डिपो स्थित अपने वॉटर एटीएम को भरने में अभी भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इसके आसपास कोई नल कनेक्शन नहीं है। फिलहाल, हम 20 लीटर के पानी के कैन लाकर इसे भर रहे हैं। इसके अलावा, हमने दो महीने के लिए एक अभियान चलाया है, ताकि हम कुछ सहयोग राशि इकट्ठा कर सकें। इसके तहत हम लोगों से वॉटर एटीएम का एक दिन का खर्च उठाने का अनुरोध करते हैं, जो लगभग 600 रुपए होता है।
अब भी वॉटर एटीएम लगाने में सही जगह का चुनाव और आधिकारिक अनुमति हासिल करना सबसे बड़ी बाधायें हैं। वॉटर एटीएम पहल के जरिए हम पानी की मांग को लेकर एक आंदोलन खड़ा कर पाए हैं। पानी की उपलब्धता एक बुनियादी हक है और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
दिल्ली में 300-400 लेबर चौक हैं। अगर हर वार्ड का पार्षद या स्थानीय विधायक इन इलाकों में एक प्याऊ या वॉटर एटीएम लगाने का संकल्प कर ले, तो वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि श्रमिक समुदाय पानी जैसी आवश्यकता से वंचित नहीं रहेगा। यह श्रमिक ही हैं जो इन शहरों को बनाते और संवारते हैं। लेकिन साथ ही वे हर दिन के साथ भीषण होती जा रही गर्मी से भी जूझ रहे हैं।
शेख अकबर अली मानवाधिकार कार्यकर्ता और बस्ती सुरक्षा मंच के सह-संस्थापक हैं।
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लेखक के बारे में
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शेख अकबर अली दिल्ली स्थित आवास अधिकार कार्यकर्ता और शोधकर्ता हैं। वे झुग्गी-बस्तियों के एक सामुदायिक नेटवर्क बस्ती सुरक्षा मंच के सह-संस्थापक और कार्यक्रम समन्वयक हैं। उन्हें इस क्षेत्र में काम करने का लगभग 27 वर्षों का अनुभव है। वे अलग-अलग स्थानीय निकायों और अर्बन डिजाइन संगठनों के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। अकबर ने वंचित समुदायों तक आंगनवाड़ी, पानी, साफ-सफाई और अनौपचारिक शिक्षा जैसी सुविधाएं पहुंचाने पर उल्लेखनीय काम किया है।