सामाजिक न्याय
ऐसे विचारों और प्रयासों पर चर्चा जो सामाजिक रूप से हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए संसाधनों, अवसरों और अधिकारों तक पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में काम करते हैं।
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पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले सामाजिक बदलावों में बहुत समय और धैर्य लगता है
नट सरीखे पारंपरिक प्रथाओं को मानने वाले समुदाय के साथ काम करते हुए समय, धैर्य और सामाजिक जटिलताओं को गहरी समझ की ज़रूरत होती है। -
क्यों मेघालय में तिवा जनजाति को नाम से लेकर भाषा तक बदलनी पड़ रही है?
तिवा लोग असम के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं जहां उन्हें अनुसूचित जनजाति माना गया है लेकिन मेघालय में ऐसा नहीं है। -
भारत के अपराध कानून अपने नागरिकों को सजा कैसे देते हैं?
सुधार के दावों के बावजूद, भारतीय अपराध कानून आज भी बहुत असंगत तरीके सजा देते, नागरिक मामलों का अपराधीकरण करते और अंग्रेजों के जमाने के मूल्यों को ढोते दिखते हैं। -
अपनी पहचान बनाने के संघर्ष में विमुक्त घुमंतू जनजातियां
ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे विमुक्त घुमंतू जनजाति समुदायों ने अंग्रेजी शासन से लेकर आज तक सामाजिक और प्रशासनिक भेदभाव का सामना किया है। देखें, उनकी चुनौतियों और पहचान की लड़ाई की पूरी कहानी। -
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रोहिंग्या संकट में नागरिक समाज संगठन कैसे मदद कर सकते हैं?
भारत में रोहिंग्या समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है, वे विस्थापित हैं और अदृश्य कर दिए गए हैं। नागरिक समाज उन्हें एक गरिमामय जीवन तक पहुंचने में कैसे मदद कर सकता है? -
फॉस्टर केयर प्रणाली को मजबूत करने के देश में क्या कदम उठाए जाने की जरूरत है
फॉस्टर केयर एक ऐसा सिस्टम है जो उन बच्चों को देखभाल और सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें अपने जैविक माता-पिता के साथ रहने का मौका नहीं मिल रहा हैं। -
थियेटर ऑफ द ऑप्रेस्ड: वंचितों का रंगमंच जिसमें हम सब कलाकार हैं
कैसे समाजसेवी संस्थाएं, थियेटर ऑफ द ऑप्रेस्ड का इस्तेमाल कर शिक्षा, समाज और पर्यावरण से जुड़े तमाम मुद्दों पर एक नई तरह से संवाद विकसित कर सकती हैं। -
पर्यावरण बचाने के लिए आंदोलन खड़ा करने में क्या-क्या लगता है?
पर्यावरणविद स्टालिन दयानंद, पर्यावरण से जुड़े आंदोलनों में जनभागीदारी पर बात कर रहे हैं और बता रहे हैं क्यों ये विकास विरोधी नहीं कहे जा सकते हैं।