मनोरंजन
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फील्ड में एक बार: जब डेटा हर जगह था, प्राइवेसी कहीं नहीं!
क्लासरूम से वॉशरूम तक, टाइम यूज स्टडी में रिसर्चर की डायरी में हर गतिविधि की एंट्री होती है, उसमें खर्च हुए वक्त के साथ। -
स्वतंत्रता दिवस सेलः नो ऑफर ऑन रोटी!
स्वतंत्रता के आठ दशक बाद भी करोड़ों लोग भोजन जैसे मौलिक अधिकार से वंचित हैं। क्या आजादी का मतलब यही है? -
अब संस्थाओं का असर सिर्फ महसूस किया जाएगा, देखा नहीं जा सकेगा!
क्या हो अगर संस्थाएं अपना काम तो करें, पर बता न सकें? हो सकता है कि रिपोर्टिंग, मॉनिटरिंग और फंडिंग, सब कुछ भावनाओं से ही समझना पड़े। -
जब तक सूरज-चांद रहेगा, किसका-किसका नाम रहेगा?
बड़ी घोषणाओं की जमीनी हकीकत में अक्सर विरोधाभास नजर आता है। -
स्कॉलरशिप पोर्टलः एरर 404 – सोशल जस्टिस नॉट फाउंड!
स्कॉलरशिप तक पहुंचने के लिए छात्रों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो तमाम योग्यताओं के बावजूद उन्हें ‘वंचित’ बना देती हैं। -
विकास हो रहा है, अब बताओ – दिखेगा कब?
विकास से जुड़ी आधी-अधूरी और दिखावटी कोशिशों पर कुछ उलटबांसी। -
ऑनलाइन मीटिंग: विकास का वर्चुअल विलाप
जब एजेंडा हो पुराना, स्लाइड हो नई और आवाज़ें हो म्यूट, तो समझ जाइए आप ऑनलाइन मीटिंग में हैं। -
गर्मी में फील्ड ट्रिप की चुनौतियां और चाय
एसी दफ्तरों में बैठकर आदेश देने वाले मैनेजर क्या जानें, भीषण गर्मी में फील्ड पर दिन गुजारने वाले कर्मचारियों के दिल का हाल। ये तो चाय है जो सब करवा देती है। -
ग्रामीण स्वास्थ्य की हकीकत: ‘ग्राम चिकित्सालय’ के माध्यम से!
जब डॉक्टर बीमारी के लक्षण गूगल करे या बीपी मशीन में छेद हो—तो समझिए, यही है हमारी ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था!