चौकीदारी की छड़ी
दक्षिणी राजस्थान में उदयपुर जिले के आसपास की कभी बंजर पड़ी जमीन अब सुरक्षित और विकसित है। पिछले 25 वर्षों में इन आम ज़मीनों को उनके आसपास के गांवों द्वारा बहुत ही सावधानी से चारागाहों में बदल दिया गया है।
इसे बनाए रखने के लिए हर घर अपना योगदान देता है और होने वाले फायदे को भी आपस में सब बराबर बांटते हैं। अपनी जमीन पर दूसरों के अतिक्रमण (दूसरे गांवों या आवारा चरने वाले पशुओं और बकरियों) से बचाव को सुनिश्चित करने के लिए झडोल प्रखण्ड में सुल्तान जी का खेरवारा के गाँव के निवासियों ने एक अनोखी रणनीति को विकसित किया है। इस गाँव में कुल 450 घर हैं। अपनी ज़मीन की रक्षा के लिए ग्रामीणों ने चौकीदारी का फ़ैसला किया। जिसके लिए उन्होंने हर दिन एक अलग घर के एक सदस्य को निगरानी के काम पर भेजना शुरू कर दिया।
उन्होनें एक मजेदार तरीका भी विकसित किया है ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि चारागाहों पर निगरानी की बारी कौन से घर की है। निगरानी करने वाले आदमी को एक छड़ी दी जाती है जिसे वह हमेशा अपने पास रखता है। जब उनकी बारी खत्म हो जाती है तब वह उस छड़ी को अपने पड़ोसी के घर के बाहर रख देता है जो इस बात का संकेत होता है कि अगली बारी उनकी है। इस तरह से, यह छड़ी एक घर से दूसरे घर तक जाती है और ग्रामीणों को यह बताती है कि इस बार गाँव के चीजों की सुरक्षा की बारी उनकी है।
आएशा मरफातिया पहले इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू में संपादकीय सहयोगी थीं।
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लेखक के बारे में
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आएशा मरफातिया भारत में वैकल्पिक प्रोटीन परिस्थितिकी के निर्माण पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था गुड फूड इंस्टीट्यूट इंडिया में संवाद सहायिका के रूप में काम करती हैं। उन्होनें इससे पहले इको फेम्म के लिए सलाहकार के रूप में और इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू में संपादकीय सहयोगी के रूप में काम किया है जहां उन्होनें लिखने और सम्पादन के कामों के अलावा अरुण माइरा की मेजबानी वाले ‘ऑन द कोण्ट्ररी’ नाम के पॉडकास्ट पर भी काम किया था। आएशा का काम द वाइर, स्क्रोल और क्वार्ट्ज़ इंडिया में प्रकाशित हुआ है। उन्होनें सेंट ज़ेवियर कॉलेज मुंबई से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है।