कोविड़-19 की वजह से बढ़ी भीड़
कौशल कुमार बिहार में सारण जिले के एक फेरीवाले हैं और गाँव-गाँव घूमकर बर्तन बेचते हैं। उन्होनें ग्राम वाणी के सामुदायिक मीडिया प्लैटफ़ार्म मोबाइल वाणी के अजय कुमार से बात की। अपनी इस बातचीत में उन्होनें बताया कि वह थक गए हैं और अपने काम को बदलना चाहते हैं यानी कोई दूसरा काम करना चाहते हैं। लेकिन दूसरे तरह के कामों में लगे हुए उनके दोस्तों का कहना है कि यह बेकार की बात है। उन सभी के अपने-अपने छोटे व्यापार हैं और कोविड़-19 महामारी की शुरुआत से ही इन सबकी बिक्री बुरी तरह से कम हो गई है।
कौशल का कहना है कि स्थिति गंभीर है। हर चीज की कीमत बहुत अधिक है और जनता के पास महंगी चीजें खरीदने के पैसे नहीं हैं। बिक्रेताओं की संख्या बढ़ने के कारण मांग से ज्यादा आपूर्ति की स्थिति पैदा हो गई है। इससे कौशल जैसे लोग मुश्किल में आ गए हैं। जहां पहले वह हर दिन 500 रुपए या उससे अधिक कमा लेते थे वहीं अब यह राशि घटकर 100–500 रुपए हो गई है।
मुद्रास्फीति और महामारी के कारण प्रतिस्पर्धा में हुई वृद्धि का कौशल जैसे रेहड़ी-पटरी वालों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है।
ग्राम वाणी एक सामाजिक तकनीकी कंपनी है जो समुदायों को अपनी आवाज़ में कहानियाँ बनाने, आवाज बुलंद करने और साझा करने में सक्षम बनाती है। अजय कुमार 2016 से मोबाइल वाणी में एक स्वयंसेवी के रूप में काम कर रहे हैं।
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लेखक के बारे में
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ग्राम वाणी एक सामाजिक तकनीक कंपनी है। 2009 तक यह आईआईटी दिल्ली के अंदर तक ही सीमित थी लेकिन 2009 में इसे सूचना के प्रवाह की दिशा बदलने के उद्देश्य से इस संस्थान के परिसर से बाहर लाया गया। उपकरण डिज़ाइन के लिए सरल तकनीकों और सामाजिक संदर्भ की मदद से ग्राम वाणी की पहुँच भारत में 15 से अधिक राज्यों के साथ-साथ अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका में 2.5 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं तक हो गई है।