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पर्यावरण

तमिलनाडु के मंदिरों में चमगादड़: आस्था से सुरक्षित और आस्था से ही संकटग्रस्त

कैलासनाथर मंदिर परिसर में चमगादड़ों का झुंड_ तमिलनाडु के मंदिरों में चमगादड़
१ सितंबर २०२५ को प्रकाशित
कैलासनाथर मंदिर परिसर में चमगादड़ों का झुंड- तमिलनाडु के मंदिरों में चमगादड़
चमगादड़, तमिलनाडु की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं और किसानों को मौसमी पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं। | चित्र साभार: थानीगइवेल ए

तिरुनेलवेली जिले के मुरप्पनाडु गांव में स्थित, सदियों पुराना कैलासनाथर मंदिर बड़ी संख्या में चमगादड़ों का घर है। देशभर के अन्य प्राचीन स्मारकों की तरह, तमिलनाडु के मंदिर भी चमगादड़ों का बसेरा होने के लिए जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए, कृष्णापुरम के एक मंदिर का एक भीतरी अंधेरा कमरा, हमेशा चमगादड़ों की आवाज से गूंजता रहता है जबकि इसके बाकी हिस्से में श्रद्धालु भोजन बनाने और पूजा-पाठ में लगे रहते हैं।

यहां मंदिरों से जुड़ी स्थानीय लोककथाओं में भी चमगादड़ गहराई से शामिल दिखते हैं। मुरप्पनाडु के पवित्र वनक्षेत्र में स्थित मरथु सुदलाई मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसकी रक्षा एक उग्र देवता करते हैं। गांव के लोग एक शिकारी की कहानी सुनाते हैं जिसने चमगादड़ों पर जब गोली चलाने की कोशिश की तो गोली पलटकर उसे ही लग गई और उसकी मौत हो गई। वे इस घटना को देवता की तरफ से दिया गया दंड मानते हैं। समुदाय की आस्था है कि यही देवता जंगलों और चमगादड़ों की रक्षा कर रहे हैं।

मंदिर, चमगादड़ों के कई तरह के आवासों से केवल एक भर हैं, वे तिरुनेलवेली में फैले केला बागानों में भी रहते हैं। ये निशाचर जीव लंबे समय से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और किसान इनकी मदद से मौसमी बदलावों का आकलन कर पाते हैं। जैसे कि जब चमगादड़ मंदिर से उड़कर, फलदार पेड़ों की ओर जाने लगते हैं तो यह संकेत होता है कि फलों के पकने का मौसम पास आ चुका है।

केले के घने बागानों में रहने वाले चमगादड़ों को किसान ‘बरसाती चमगादड़’ कहते हैं। इन चमगादड़ों के झुंड मानसून आने से पहले पेड़ों से उड़ जाते हैं और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद ही लौटते हैं। गोपालसमुद्रम में केले की खेती करने वाले एक किसान बताते हैं कि इससे उन्हें बारिश का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। इसी तरह कुंडापुरा के कमलाशिले की आदिस्थल गुहालय गुफा में कोलार लीफ-नोज्ड चमगादड़ रहते हैं जो इनकी एक विलुप्तप्राय प्रजाति है। इन्हें भी बारिश से ठीक पहले उड़ते हुए देखा जाता है और ऐसा होना संभावित बाढ़ का संकेत होता है।

चमगादड़ इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे आम, केला, अमरूद, कोको, एवोकाडो, लौंग, अंजीर, काजू, नारियल और अगावे जैसे कई पौधों के प्राकृतिक परागण में एक अहम भूमिका निभाते हैं। वे उन कीटों को भी खाते हैं जो आमतौर पर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस तरह वे सहज और प्राकृतिक कीट नियंत्रक व्यवस्था की तरह भी काम करते हैं। लेकिन अपने इस पारिस्थितिक महत्व के बावजूद चमगादड़ों की संख्या लगातार घटती हुई प्रतीत होती है।

इस गिरावट का एक प्रमुख कारण मंदिरों में चल रहा नवीनीकरण कार्य है। कल्लिदैकुरिची में थिरुवदुरै मंदिर के एक गार्ड बताते हैं कि तीर्थयात्रा के लिए पर्यटकों के समूह यहां आते रहते हैं, इसलिए मंदिर परिसर को साफ रखने के लिए प्रबंधन को मजबूरन चमगादड़ों को हटाना पड़ता है। पहले, इस मंदिर में भारतीय उड़न लोमड़ी (इंडियन फ्लाइंग फॉक्स) प्रजाति के चमगादड़ों की एक बड़ी संख्या पाई जाती थी लेकिन लगातार हो रहे पुनर्निर्माण कार्य के चलते, इनकी संख्या भी लगातार कम हो रही है।

अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकॉलजी एंड एन्वायरमेंट (एट्री) के एक शोधकर्ता बताते हैं कि बड़े त्यौहारों के दौरान धुएं या पानी की मदद से चमगादड़ों को मंदिरों से भगाया जाता है। अम्बासमुद्रम के काशीविश्वनाथर मंदिर में जहां कभी श्नाइडर लीफ नोज्ड चमगादड़ रहा करते थे, वहां उन्हें घुसने से रोकने के लिए अब जाल लगा दिए गए हैं। हालांकि मंदिर की दीवारों से परे चमगादड़ों को लेकर लोगों के विचार अलग हैं। कल्लिदैकुरिची के एक किसान कहते हैं कि “मैंने शाम छह बजे के बाद छोटे-छोटे चमगादड़ उड़ते देखे हैं। मुझे मालूम है कि वे खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खाते हैं और खेती के लिए फायदेमंद होते हैं।”

कंगकना पाल वन्यजीव संरक्षण पर काम कर रही हैं और डब्ल्यूसीएस इंडिया की नेचर-कल्चर फेलोशिप का हिस्सा रही हैं।

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