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आजीविका

खेती के मशीनीकरण से रोजगार खोता मुसहर समुदाय

तस्वीर में महिला किसान हैं_​खेतिहर मजदूरी
२६ अगस्त २०२५ को प्रकाशित

​​हम उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के दोघरा गांव की मुसहर बस्ती के निवासी हैं। हमारे समुदाय की रोजी-रोटी हमेशा खेतों में मेहनत-मजदूरी करके ही चली है। पहले के दिनों में जब खेतों में फसल होती थी तो रोपाई, बुआई, गुड़ाई और कटाई के काम हमें रोजगार देते थे। इससे हमें मजदूरी तो मिलती ही थी और कभी-कभी खेतों से बचा हुआ अनाज भी मिल जाता था। उसी से घर चलता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कृषि यंत्रीकरण ने खेती के कामों में इंसानों की जगह ले ली है। कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर, खरपतवार खत्म करने के लिए कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल हो रहा हैं।​ 

​​पहले जिस काम में कई हाथ लगते थे, वह अब एक ही मशीन से पूरा हो जाता है। ऐसे में हमारे लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता जा रहा है। खेतिहर काम के अलावा मजदूरी के दूसरे काम, जैसे मिट्टी और ईंट-पत्थर ढोने तक के लिए मशीनें और जिप्सी इस्तेमाल हो रही हैं।​ 

​​इस​ ​संकट​ ​का​ ​ज्यादा​ ​असर​ ​हम जैसी ग्रामीण​ ​महिलाओं पर पड़ रहा है।​ ​पहले​ ​खेतों​ ​में​ ​रोपाई​ ​और​ ​कटाई​ ​के​ ​काम​ ​में​ ​महिलाओं​ ​की​ ​बड़ी​ ​भूमिका​ ​होती​ ​थी।​ ​यह​ ​न​ ​केवल​ ​उनकी​ ​आय​ ​का​ ​साधन​ ​था​, ​बल्कि​ ​परिवार​ ​को​ ​चलाने​ ​में​ ​उनकी​ ​बराबर​ ​की​ ​हिस्सेदारी​ ​भी​ ​थी।​ ​अब​ ​मशीनों​ ​ने​ ​महिलाओं​ ​का​ ​रोजगार​ ​लगभग​ ​छीन​ ​लिया​ ​है।​ 

​​हमारे पास अपनी जमीन तो है नहीं। ऐसे में अगर हर काम मशीन करेगी, तो हमारा भविष्य क्या होगा? हम अपने बच्चों का पेट कैसे भरेंगे? उनकी पढ़ाई कैसे होगी? परिवार का खर्चा कैसे चलेगा? अब जब खेतों और मजदूरी के अधिकतर काम मशीनों के हवाले हो गए हैं, तो हम जैसे कई लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है। यही हमारी सबसे बड़ी चिंता है।

रमावती देवी और चिंता देवी खेतिहर श्रमिक हैं।

रामवृक्ष गिरी और दुर्गा ने भी इस लेख में योगदान दिया है।

अधिक जानें:जानें​, कैसे बिहार की मुसहर बस्तियों में शिक्षा का समावेशी मॉडल तैयार हो रहा है।​

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