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आजीविका

बैंक कर्जे की किस्त तय है लेकिन शहद की कीमत नहीं, क्यों?

खेत में शहद के लिए लगाए गए मधुमक्खी के छत्ते_मधुमक्खी पालक
१० जुलाई २०२५ को प्रकाशित
खेत में शहद के लिए लगाए गए मधुमक्खी के छत्ते_मधुमक्खी पालक
हम आमतौर पर कच्चा शहद बेचते हैं क्योंकि हमारे पास इसे फिल्टर करने की सुविधा नहीं है। | चित्र साभार: अनीता धाकड़

मेरा नाम अनीता धाकड़ है। मैं मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के धुरकुडा गांव की रहने वाली हूं। यहां अधिकतर लोग मेरी तरह ही मधुमक्खी पालन का काम करते हैं। हमारे गांव में जब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत स्वयं सहायता समूह शुरू किए गए तो हम भी उससे जुड़ गए। समूह में हमें स्वरोजगार करने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया जाता था। इसी के चलते, मैंने मधुमक्खी पालन करने के बारे में सोचा। मिशन के तहत इस काम के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे हमारी हिम्मत और बढ़ी। 

अपने काम की शुरूआत करने के लिए मैंने स्वयं सहायता समूह से कर्ज लिया। पहली बार में मैंने पचास हजार रुपए का और फिर एक लाख रुपए का कर्ज लिया था। इसके बाद साल 2023 में मैंने अपने गांव की ही एक महिला, रामकटोरी धाकड़ के साथ मिलकर छह लाख का लोन लिया और अब हम साथ मिलकर मधुमक्खी पालन का काम करते हैं। हम पिछले तीन-चार साल से इस काम में लगे हुए हैं और फिलहाल हम दोनों पर आधा-आधा यानी तीन-तीन लाख रुपए का कर्ज है।

शुरुआत में हमारा काम अच्छा चला। पहले साल जब हमने शहद बेचा, तो हमें 150 रुपये प्रति किलो का भाव मिला लेकिन फिर समस्याएं आने लगीं। साल-दर-साल शहद की मांग कम होने लगी़ जिससे हमारे पास शहद की बाल्टियां इकट्ठी होती चली गईं। इस बार हमारे पास कुल 170 शहद की बाल्टियां थीं। इनमें से 80 बाल्टी शहद पिछले साल और 90 बाल्टी इस साल उत्पादित किया गया था। एक बाल्टी में लगभग 30-35 किलो शहद होता है। हमें मजबूरी में लगभग आधे दाम यानी 80 रुपये किलो के हिसाब से शहद बेचना पड़ा। हमारे पास ज्यादा देर तक शहद रोककर रखने की गुंजाइश नहीं थी क्योंकि हमें लोन की किस्तें भी भरनी थीं।

हम आमतौर पर कच्चा शहद बेचते हैं क्योंकि हमारे पास इसे फिल्टर करने की सुविधा नहीं है। पास के पहाड़गंज ब्लॉक में एक मशीन लगी हुई है लेकिन वह अभी तक चालू नहीं हुई है। इसके अलावा, यहां के व्यापारी फिल्टर किया हुआ और कच्चा शहद एक ही दाम पर खरीदते हैं, इसलिए हम कच्चा ही बेच देते हैं। फिल्टर मशीन वाले एक किलो शहद को फिल्टर करने के लिए दस रूपये लेते है जिससे हमारी उत्पादन लागत बढ़ जाती है। 

सबसे बड़ी समस्या खरीदारों का ना मिलना है। इस वजह से हमारे इलाके में कई लोग अब इस काम से पीछे हटने लगे हैं। हाल ही में, जब स्थिति बहुत खराब हो गई तो बहुत सारे मधुमक्खी पालन करने वाले लोगों ने अपनी आवाज़ उठाई थी। हमनें एनआरएलएम के ऑफिस में जाकर बात की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। मैं खुद मुरैना में एक मीटिंग में शामिल होने गई थी। उसके बाद, हमारी एनआरएलएम के किसी अधिकारी के साथ एक ऑनलाइन मीटिंग भी हुई थी। इतना सब करने के बाद, दोबारा थोड़ी-थोड़ी खरीदारी शुरू हुई है। हमने शहद दे दिया है लेकिन उसका भुगतान अब तक नहीं मिला है। हमें कहा गया है कि दो से तीन महीने में पैसे आएंगे। 

पिछले दो साल में लगभग चार-चार लाख रुपये का खर्चा हुआ लेकिन आमदनी कुछ खास नहीं हो पाई। अगर शहद 150 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिकता, तो हमारी मेहनत की भरपाई हो जाती और बैंक का कर्ज भी उतर जाता। अब तो यह सोचने की नौबत आ गई है कि मधुमक्खियों को ही बेच दें क्योंकि बैंक का ब्याज तो हर हाल में देना है। लेकिन मेरा मन ऐसा करने का बिल्कुल नहीं है। 

इस समस्या को लेकर जब हम मुरैना में एनआरएलएम के अधिकारियों से मिलें तो उनका कहना था कि शहद को फिल्टर करके आधा किलो और एक किलो के पैकेट में पैक करिए, जीएसटी नंबर लीजिए, रजिस्ट्रेशन कीजिए और जब डिमांड होगी तो बिल के साथ बेचिए। हमारे लिए ये सब करना संभव नहीं है। हम न तो इतने पढ़े-लिखे हैं, न हमारे पास संसाधन हैं, और न ही इतना पैसा है कि मशीनें खरीदकर पैकिंग और मार्केटिंग कर सकें। इसके अलावा, हमारे पास बड़ी मात्रा में शहद उत्पादन होता है, सारा का सारा खुद से बेच सकना कैसे संभव है।

हमारी तो केवल यही मांग है कि शहद के अच्छे दाम मिलें और सही समय पर भुगतान हो। अगर एक सही व्यवस्था बना दी जाएगी तो हम यह काम छोड़ना नहीं चाहेंगे। हमें तो मेहनत करनी है। हमारे शहद के रेट बढ़ जाएं तो हम काम पर लगे रहेंगे। दरअसल, हमें कोई बहुत बड़ी मदद नहीं चाहिए – सिर्फ इतनी कि हमारी मेहनत बेकार न जाए। 

अनीता धाकड़, मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के धुरकुडा गांव की रहने वाली हैं और एक मुधमक्खी पालक हैं। 

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