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पर्यावरण

खेती को जलवायु अनुकूल बनाने का प्रयास करते सुंदरबन के किसान

सभी खेतों में भरा हुआ पानी और एक झोपड़ी_सुंदरबन
८ जुलाई २०२५ को प्रकाशित
खेतों में भरा पानी और एक झोपड़ी_सुंदरबन
साल दर साल आने वाले चक्रवातों के बाद खेतों में बढ़ते खारेपन की वजह से किसानों ने यहां खेती करना छोड़ दिया था। | चित्र साभार: राहुल सिंह

मेरा नाम राहुल सिंह है और मैं लगभग 18 वर्षों से बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे पूर्वी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों, किसानों तथा पर्यावरण से जुड़े विषयों पर स्वतंत्र पत्रकारिता करता रहा हूं।

मैं बीते कई सालों से पर्यावरण से जुड़े बदलावों को समझने के लिए पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र के विभिन्न द्वीपों और गांवों का दौरा करता रहा हूं। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण है, जो चक्रवातों से लगातार प्रभावित रहा है। यही वजह है कि यहां के भांगातुशखाली द्वीप के किसान बदलते मौसम, चक्रवातों और बढ़ते खारेपन जैसी समस्याओं के बीच खेती को जलवायु के अनुकूल बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।

भांगातुशखाली द्वीप, पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना जिले के संदेशखाली ब्लॉक-दो में स्थित है, जो कालिंदी और छोटा कोलागाछी नदियों से घिरा हुआ है। यह द्वीप पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बंटा हुआ है। 2009 में आये भीषण आइला चक्रवात के बाद यहां का पूर्वी हिस्सा नदियों में आए समुद्र के खारे पानी से पूरी तरह से भर गया था। इससे मिट्टी में खारेपन की मात्रा भी अधिक हो गयी थी। हालांकि पश्चिमी हिस्से पर इसका प्रभाव कम पड़ा, जिस वजह से आज भी यहां पेड़-पौधे तथा फसलें देखी जा सकती हैं। हालांकि सुंदरबन डेल्टा में पानी का खारापन बीते कई दशकों से बढ़ता रहा है।

भांगातुशखाली के स्थानीय निवासी अलीमुद्दीन बताते हैं कि पहले यहां भी हरे-भरे खेत हुआ करते थे। लेकिन साल दर साल आने वाले चक्रवातों के बाद बढ़ते खारेपन की वजह से पूर्वी हिस्से की जमीन की उर्वरता कम होती गई। इसी वजह से किसानों ने एक समय बाद यहां खेती करना छोड़ दिया था। लेकिन पिछले कुछ समय से वे धीरे-धीरे अपनी खेती को जलवायु के अनुकूल बनाने के प्रयास भी कर रहे हैं।

यहां पहले धान, सब्जियां और फल उगाए जाते थे, लेकिन अब किसान अपनी जमीन पर ‘भेरी मत्स्यपालन’ (कृत्रिम संरचना या तालाब बनाकर मछली पालन) कर रहे हैं। हालांकि जानकर भेरी मछली पालन की दूसरी और भी वजहें बताते हैं, जैसे संगठित पूंजी निवेश, सरकार की नीतियां इत्यादि। यानी अब यहां के पूर्वी हिस्से की जमीन पर मत्स्यपालन होता है, जबकि पश्चिमी हिस्से में फसलों की खेती होती है। यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण महज चंद मील की दूरी पर आजीविका के तरीके कितने अलग हैं, जिसके लिए किसानों को नए उपाय खोजने पड़े हैं।

स्थानीय किसान अमिताश मंडल बताते हैं कि उनका घर पश्चिमी हिस्से में है, जहां वह कुछ फसलें व सब्जियां उगाते हैं। लेकिन उनके तीन बीघा खेत पूर्वी हिस्से में हैं और वहां की मिट्टी पूरी तरह खारी है। इसलिए अब वह वहां मछली पालन करते हैं।

किसान और कृषि प्रशिक्षक बिप्लव मंडल बताते हैं कि सुंदरबन में सिर्फ मिट्टी में ही नहीं, बल्कि हवा में भी लगभग साढ़े सात फीट की ऊंचाई तक खारापन है। गर्मियों में यह समस्या और भी बढ़ जाती है। वह पॉली मल्चिंग जैसी तकनीकों को लाने की बात करते हैं, ताकि मिट्टी को खारेपन से बचाया जा सके।

तात्कालिक तौर पर भेरी मछली पालन से किसानों की आजीविका चल रही है। लेकिन यह दीर्घकालिक रूप से फायदेमंद नहीं है, क्योंकि इसमें मौजूद कीटनाशक व अन्य रासायनों के चलते जलस्रोत और मिट्टी प्रदूषित होते हैं।

पश्चिम बंगाल कृषि विभाग के ब्लॉक टेक्नोलॉजी मैनेजर हिमांशु मैती बताते हैं कि आइला के बाद सुंदरबन के खेतों की मिट्टी में नमक की मात्रा काफी बढ़ गयी है। इसलिए अब यहां धान, सब्जियों और तिलहन की ऐसी किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो खारेपन को सह सकें और एक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण में भी टिकाऊ उत्पादन हो सके।

इस क्षेत्र में काम कर रही राजारहाट प्रसारी संस्था की टीम लीडर अनोवरा खातून बताती हैं कि सुंदरबन जैसे इलाकों में प्राकृतिक असंतुलन और लवणता, केवल खेती ही नहीं बल्कि पानी, पोषण और आजीविका पर भी असर डालते हैं। इसलिए उनकी संस्था किसानों को टिकाऊ कृषि के साथ-साथ पानी, पोषण और आजीविका की सुरक्षा की दिशा में भी प्रशिक्षित कर रही है।

अतः यहां की परिस्थिति दिखाती है कि भले ही चक्रवात लोगों के लिए एक आपदा रही हो, लेकिन इसने मजबूरी में उपजे नवाचारों के जरिए खेती, आजीविका और सोच के तरीकों को जलवायु के अनुकूल ढालने का रास्ता भी दिखाया है।

राहुल सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं। वे पूर्वी राज्यों में चल रही गतिविधियों, खासकर पर्यावरण व ग्रामीण विषयों पर लिखते हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।

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अधिक करें: लेखक के काम को विस्तार से जानने और अपना समर्थन देने के लिए उनसे rahuljournalist2020@gmail.com पर सम्पर्क करें।

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