कश्मीर विलो: स्थानीय बैट उद्योग पर गहराते संकट के बादल

कश्मीर घाटी के अनंतनाग जिले में एक सदी से भी अधिक समय से कश्मीर विलो से क्रिकेट बैट बनते आए हैं। हालांकि, पेशेवर मानकों पर खरा न उतर पाने के चलते यह बैट लंबे समय तक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दिखायी नहीं दिए। लेकिन साल 2021 और 2022 के टी-20 विश्वकप में कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों ने इन्हें अपनाया और कहानी बदल गयी। नतीजन, दुनिया भर में इनकी मांग तेज़ी से बढ़ी। आज इस बैट उद्योग से लगभग डेढ़ लाख कश्मीरी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। लेकिन हालिया समय में कश्मीर विलो की कमी के चलते इसकी बढ़ी हुई वैश्विक मांग की आपूर्ति एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।
यह कैसे हुआ? इस सवाल का जवाब देते हुए जीआर8 स्पोर्ट्स के फवाज़ उल कबीर बताते हैं कि, “मैं 2008 में क्रिकेट खेलने वाले कई देशों में इन बैटों के सैंपल लेकर गया। वहां जाकर मुझे समझ आया कि हमारे बैट में वह बैलेंस, स्ट्रोक और स्वीट स्पॉट नहीं है, जो पेशेवर खिलाड़ियों को चाहिए होता है। एक अच्छा पेशेवर क्रिकेट बैट बनाने की सही प्रक्रिया क्या है, यह समझने में मुझे पूरे 11 साल का समय लगा।”
दुनिया में केवल दो प्रकार के विलो होते हैं, जिनसे क्रिकेट बैट बनाए जा सकते हैं: इंग्लिश विलो और कश्मीर विलो। फवाज़ स्वीकार करते हैं कि कश्मीर विलो से पेशेवर क्रिकेट बैट बनाना बेहद मुश्किल काम था। वे कहते हैं, “उस समय यह लगभग असंभव था। फिर भी लगातार कोशिशों और मेहनत के साथ हम ऐसे क्रिकेट बैट बनाने में सफल हुए, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते थे। लेकिन इस सफलता के साथ एक जोखिम ने भी दस्तक दी। वर्तमान में यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है।”
कई दशकों तक बैट उद्योग के लिए विलो के पेड़ों को काटा गया और उन्हें दोबारा लगाए जाने की कोई रणनीति बनाने पर ध्यान नहीं दिया गया। आज कश्मीर विलो की मांग उसकी आपूर्ति से कहीं अधिक है। फवाज़ चेतावनी देते हुए कहते हैं कि, “हमें अपनी ज़रूरत के लिए जितने पेड़ लगाने चाहिए थे, हम उन्हें लगाने में असफल रहे। हमारी हालिया मांग को पूरा करने के लिए हमें हर साल 70,000 पेड़ों की ज़रूरत है, जो आने वाले सालों में एक लाख पेड़ों तक पहुंच सकती है। लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा, तो अगले पांच सालों में यह उद्योग ठप हो जाएगा।” वह यह भी बताते हैं कि एक दशक पहले तक कश्मीर में 2,50,000 क्रिकेट बैट बनाए जा रहे थे। लेकिन अब यहां हर साल 30 लाख बैट बनाए जाते हैं। इसका मतलब है कि महज दस सालों में इनके उत्पादन में 15 गुना इज़ाफा हुआ है।
मोहम्मद रिज़वान बीते आठ सालों से बैट बनाने वाली एक फ़ैक्ट्री में काम कर रहे हैं। उन्होंने एक सहायक के तौर पर काम शुरू किया था और समय के साथ अपनी लगन से क्रिकेट बैट बनाने का कौशल सीखा। उनका मानना है कि नई पीढ़ी भले ही बैट उद्योग को फलते-फूलते देख रही है, लेकिन इसका कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है। वह कहते हैं, “हम लगातार विलो के पेड़ों को काट रहे हैं, लेकिन बदले में एक भी पेड़ नहीं लगा रहे हैं। विलो के पेड़ को ठीक तरह से फलने-फूलने में लगभग 20 सालों का समय लग जाता है। इसका मतलब है कि अगर हमने अभी सही कदम न उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।”
हालिया स्थिति के मद्देनज़र फवाज़ युवा उद्यमियों को क्रिकेट बैट के पेशे से दूर रहने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं, “जब तक सरकार विलो की खेती और निरंतर आपूर्ति के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठाती है, इस उद्योग का भविष्य संकट में ही रहेगा। विलो तेज़ी से ख़त्म होता जा रहा है और यह कारीगरी भी उसके साथ विदा हो जाएगी।”
कैसर अली जम्मू और कश्मीर में स्थित एक पत्रकार हैं। वह आज़ादी लीडरशिप प्रोग्राम का हिस्सा हैं।
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