छात्रवृत्ति के हक में बाधा बनती पारिवारिक जटिलताएं
मैंने साल 2023 से 2025 तक पीरामल फाउंडेशन के साथ झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में गांधी फेलो के रूप में काम किया है और वर्तमान में पीरामल जिला प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हूं। फेलोशिप के दौरान, मैं पूर्वी सिंहभूम जिले में स्कूली लड़कियों को झारखंड सरकार की छात्रवृत्ति योजना सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना (एसबीपीकेएसवाय) के लिए आवेदन करने में सहयोग करती रही हूं।
सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना लड़कियों की ड्रॉपआउट दर को घटाने, बाल विवाह रोकने और किशोरियों को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभा रही है। इसके तहत कक्षा 8वीं से 12वीं तक की छात्राओं को किश्तों में कुल 40,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें कक्षा 8वीं-9वीं के लिए प्रत्येक वर्ष 2,500 रुपये और कक्षा 9वीं-12वीं के लिए प्रत्येक वर्ष 5,000 रुपये शामिल हैं। 18 साल की उम्र होने पर उन्हें एकमुश्त 20,000 रुपये मिलते हैं। आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑफलाइन है—आंगनबाड़ी या स्कूल से फॉर्म लें, जरूरी दस्तावेज लगाकर स्कूल, ब्लॉक या सेविका दीदी के माध्यम से जिला समाज कल्याण पदाधिकारी या प्रखंड कार्यालय में जमा करें। आवेदन जमा होने के बाद विभाग द्वारा इसकी जांच की जाती है और योग्य छात्राओं के बैंक खातों में राशि सीधे भेज दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि छात्रवृत्ति का लाभ सही पात्रों तक समय पर पहुंचे।
अपने काम के दौरान, मैं स्कूल जाने वाली लड़कियों को इस योजना का लाभ दिलाने में मदद करती थी। इसी दौरान झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के एक स्कूल में कक्षा 9वीं की एक छात्रा इसके लिए आवेदन नहीं कर पा रही थी। आवेदन प्रक्रिया में मां के नाम के दस्तावेज जरूरी थे, जैसे आधार कार्ड और स्वघोषणा पत्र। दुर्भाग्यवश, उसकी मां परिवार का हिस्सा नहीं थीं। उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी और संपर्क में नहीं थीं। छात्रा के पास न तो मां की आईडी थी और न ही कोई वैकल्पिक दस्तावेज।
परिवारों के टूटने के पीछे कई वजहें होती हैं—काम के लिए पलायन के चलते माता-पिता में दूरी आना, शराब की लत, घरेलू हिंसा, जल्दी या अनचाही शादियां, और बेटे की चाह जैसे लिंगभेद से जुड़े कारण। सरकारी योजनाओं की प्रक्रियाएं आमतौर पर पारंपरिक पारिवारिक ढांचे पर आधारित होती हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। कई बच्चे एकल अभिभावक (सिंगल पैरेंट) के साथ रहते हैं, तो कई बार माता-पिता में से किसी का नामांकन कार्ड, आधार या प्रमाणपत्र अनुपलब्ध होता है। मौजूदा नियमों में इन परिस्थितियों को समझने की गुंजाइश कम होती है।
एक छात्रा ने बताया, “जब मेरी दूसरी बहन हुई, तो दादी ने पापा से दूसरी शादी के लिए कहा।” ऐसे मामलों में मां या पिता परिवार छोड़ देते हैं, और बच्चे दस्तावेजी पहचान के संकट में आ जाते हैं। जब हम बच्चों को उक्त योजना का फॉर्म भरवाते हैं और दस्तावेजों की जांच करते हैं, तभी इन बाधाओं का पता चलता है। ऐसे में हम शिक्षकों की मदद से बच्चों के घर जाते हैं और उनके परिजनों या पालकों से बात करते हैं, ताकि जरूरी दस्तावेज बनवाए जा सकें। कई बार देखा गया है कि किसी छात्रा की मां का देहांत हो गया है, लेकिन परिवार ने उनका मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं बनवाया। ऐसे में छात्रा को इस योजना का लाभ लेने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
स्कूल केवल एक शैक्षणिक स्थान नहीं है—यह उन बच्चों के लिए एक सुरक्षित, व्यवस्थित और संवेदनशील परिवेश भी बन जाता है, जिनके घर का माहौल अस्थिर या तनावपूर्ण होते हैं। सामाजिक एवं भावनात्मक शिक्षा (एसईएल) के जरिए बच्चे अपनी भावनाओं को पहचानना, दूसरों से समानुभूति रखना, और मुश्किल स्थितियों से निपटना सीखते हैं। “कैसा महसूस कर रहे हो?” जैसे छोटे अभ्यास भी उनके लिए बड़ा सहारा बन जाते हैं, जिससे वे जुड़ाव, आत्मविश्वास और संतुलन महसूस करते हैं।
समुदाय के कुछ सदस्यों और शिक्षकों का सुझाव है कि यदि मां के दस्तावेज न हों, तो आवेदन प्रक्रिया में पिता या संरक्षक के दस्तावेज को मान्यता मिलनी चाहिए। यह एकल अभिभावक (सिंगल पैरेंट) वाले परिवारों के लिए बड़ी राहत हो सकती है।
सरकार और फाउंडेशन के प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान यह समझ बनी है कि, जब स्कूल का माहौल अच्छा होता है और स्कॉलरशिप जैसी मदद समय पर मिलती है, तो बच्चों के पढ़ाई छोड़ने (ड्रॉपआउट) की संभावना घटती है। वे अपनी पढ़ाई लगातार जारी रख पाते हैं। इस तरह, हर बच्चे के समग्र विकास की राह और मजबूत होती है।
रौशनी तिवारी, पीरामल में जिला प्रतिनिधि के रूप में काम कर रही हैं।
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लेखक के बारे में
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रौशनी तिवारी पीरामल स्कूल ऑफ लीडरशिप में गांधी फेलो रही हैं। झारखंड में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने, छात्रवृत्ति के प्रति जागरूकता और करियर मार्गदर्शन पर काम किया। साथ ही, शिक्षक प्रशिक्षण, सामुदायिक भागीदारी और विभागीय सहयोग के माध्यम से उन्होंने युवाओं को सशक्त बनाने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।