एक चुनौतीपूर्ण राह: जेंडर प्रोग्रामिंग से मिलने वाली प्रतिक्रिया से निपटना
हम लोगों ने 2012 में मुंबई की एक बड़ी अनौपचारिक बस्ती डोंबिवली में काम करना शुरू किया। वाचा किशोर लड़कियों को उनके अपने जीवन के साथ-साथ उनके समुदायों के जीवन में बदलाव लाने के लिए सशक्त बनाने में विश्वास रखता हैं। और इसलिए हमारा कार्यक्रम लड़कियों को अपने मन की बात कहने में सक्षम बनाने पर केंद्रित होता है—हम एजेंसी के निर्माण के लिए कौशल-आधारित प्रशिक्षण देते हैं और लड़कियों का समर्थन करते हैं ताकि वे स्थानीय मुद्दों से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम कर सकें। इस प्रक्रिया के माध्यम से लड़कियां अपने भीतर लोच विकसित करती हैं। हालांकि वे यह भी समझती हैं कि परिवर्तन धीरे-धीरे आएगा और ऐसा करने से उन्हें समुदाय के लोगों की प्रतिक्रियाओं का सामना भी करना होगा।
इसलिए किसी नए इलाक़े में जाते ही हम आंगनबाड़ी केंद्र जैसे सार्वजनिक जगहों के इस्तेमाल के लिए स्थानीय राजनेताओं से अनुमति लेते हैं। डोंबिवली में हमें यह अनुमति मिल गई थी और लड़कियों ने यह तय किया कि उनके समुदाय का प्रोजेक्ट इलाक़े के शौचालयों की जांच और उनकी स्थिति पर काम करेगा। इलाक़े की 5,000 लड़कियों और औरतों के लिए केवल चार शौचालय थे और वे भी उपयोग लायक़ नहीं थे। उन शौचालयों में दरवाज़ों की जगह पर्दे लगे थे, खिड़कियां टूटी हुई थीं, कूड़ेदान नहीं थे, न तो पानी के लिए नल था और न ही रौशनी के लिए ट्यूबलाइट या बल्ब।
लड़कियों ने 100 घरों का सर्वे करने की योजना बनाई थी लेकिन 60 लोगों के इंटरव्यू के बाद ही स्थानीय नेताओं को उनके इस प्रोजेक्ट के बारे में मालूम चल गया और उन्होंने इसे बंद करवा दिया। उन्हें इस बात की चिंता था कि इससे उनके इलाक़े की कमियां सार्वजनिक हो जाएंगी और उनकी वास्तविकता सबके सामने आ जाएगी। हमें धमकी दी गई कि हम अपना काम बंद कर दें और स्थानीय सार्वजनिक जगह के इस्तेमाल की हमारी अनुमति को भी रद्द कर दिया गया। फिर इन लड़कियों के समर्थन की एक धीमी प्रक्रिया की शुरुआत हुई। वहीं स्थानीय नेताओं की भावनाओं का ख़्याल भी रखा गया और सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में वे न भड़कें। एक स्वयंसेवी संस्था के रूप में अक्सर हमारी स्थिति एक तनी रस्सी पर चलने जैसी हो जाती है। हम अक्सर लड़कियों को अपनी एजेंसी का प्रयोग करने में मदद करने, अपरिहार्य प्रतिक्रिया से निपटने और काम की शुरुआत में हमारी मदद करने वाले स्थानीय अधिकारियों को प्रबंधित करने के बीच फंसे होते हैं।
हालांकि इस मामले में हमने अपनी परियोजना के काम को अस्थाई रूप से रोक दिया लेकिन लड़कियों की मांओं को इसके बारे में पता चला और उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया। उन्हें समर्थन देने के लिए हमने उनके साथ कई बैठकें की लेकिन इस बार हम सामने से शामिल नहीं हो सके थे। हमने लड़कियों को शौचालयों की स्थिति और कम उपयोग किए गए बजट पर डेटा प्राप्त करने के लिए आरटीआई दायर करने में मदद की। अंतत: कल्याण डोंबिवली नगर निगम से सम्पर्क साधकर लड़कियों ने शौचालय बनवाया। इस पूरी प्रक्रिया में तीन से चार साल का समय लगा क्योंकि हमें स्थिति को इस तरह से सावधानी पूर्वक सम्भालना था ताकि हमें अपना काम रोकना न पड़ जाए। ऐसा नहीं करने से हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते। यह कुछ ऐसा है जो हमें किसी भी समुदाय के साथ काम करते समय ध्यान में रखना पड़ता है। क्योंकि बदलते लिंग मानदंडों से सम्भावित नतीजों को सही दिशा में आगे ले जाना और यथास्थिति को चुनौती देना ज़्यादातर स्वयंसेवी संस्थाओं के काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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अधिक जानें: जानें कि लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए काम करने वाले संगठनों को अक्सर समुदायों के भीतर प्रतिरोध का सामना कैसे करना पड़ता है, और इससे निपटने के लिए वे क्या कर सकते हैं।
अधिक करें: स्टेफी फर्नांडो से steffifernando89@gmail.com पर और यगना परमार से vachamail@gmail.com पर सम्पर्क कर उनके काम के बारे में विस्तार से जानें और उन्हें समर्थन दें।
लेखक के बारे में
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स्टेफी फर्नांडो एक सोशल इम्पैक्ट प्रोफ़ेशनल हैं और वर्तमान में वाचा चैरिटेबल ट्रस्ट की वाचा रिसोर्स सेंटर फ़ॉर गर्ल्स एंड वीमेन नामक प्रोजेक्ट में सहायक प्रोजेक्ट निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। वह कई स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ काम कर चुकी हैं। इसके अलावा उन्हें कार्यक्रम के विचार, कार्यान्वयन, विस्तृत निगरानी और मूल्यांकन संकेतक बनाने, अनुदान पोर्टफोलियो का प्रबंधन, और रिपोर्टिंग और दस्तावेज़ीकरण सहित विविध विभागों को संभालने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। स्टेफ़ी ने सोशल वर्क विषय में एमए और विज्ञापन में विशेषज्ञता के साथ मास मीडिया में बीए की पढ़ाई की है।
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यगना परमार वाचा चैरिटेबल ट्रस्ट की वाचा रिसोर्स सेंटर फ़ॉर गर्ल्स एंड वीमेन नामक प्रोजेक्ट की निदेशक हैं। वह प्रोजेक्ट प्रबंधन, प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन और निगरानी, रणनीतिक योजना, फंडरेजिंग और दानकर्ताओं के प्रबंधन का काम देखती हैं। वह पिछले 14 वर्षों से महिलाओं और लड़कियों के अधिकार से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही हैं। यगना ने सोशल वर्क में एमए और करियर काउन्सलिंग के विषय में पीजी डिप्लोमा की पढ़ाई की है। उन्होंने पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाली लड़कियों और युवाओं के लिए करियर फ़ेयर (मेला) कार्यक्रम को भी तैयार और विकसित किया है।