इंद्रेश शर्मा
इंद्रेश शर्मा आईडीआर में मल्टीमीडिया संपादक हैं और वीडियो सामग्री के प्रबंधन, लेखन निर्माण व प्रकाशन से जुड़े काम देखते हैं। इससे पहले इंद्रेश, प्रथम और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। इनके पास डेवलपमेंट सेक्टर में काम करने का लगभग 12 सालों से अधिक का अनुभव है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पोषण और ग्रामीण विकास क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल रहे हैं।
इंद्रेश शर्मा के लेख
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हल्का-फुल्का फील्ड में एक बार: जब डेटा हर जगह था, प्राइवेसी कहीं नहीं!
क्लासरूम से वॉशरूम तक, टाइम यूज स्टडी में रिसर्चर की डायरी में हर गतिविधि की एंट्री होती है, उसमें खर्च हुए वक्त के साथ। -
हल्का-फुल्का अब संस्थाओं का असर सिर्फ महसूस किया जाएगा, देखा नहीं जा सकेगा!
क्या हो अगर संस्थाएं अपना काम तो करें, पर बता न सकें? हो सकता है कि रिपोर्टिंग, मॉनिटरिंग और फंडिंग, सब कुछ भावनाओं से ही समझना पड़े। -
हल्का-फुल्का ऑनलाइन मीटिंग: विकास का वर्चुअल विलाप
जब एजेंडा हो पुराना, स्लाइड हो नई और आवाज़ें हो म्यूट, तो समझ जाइए आप ऑनलाइन मीटिंग में हैं। -
हल्का-फुल्का सरकारी योजना 404: लाभ नॉट फाउंड
सरकारी योजनाएं सबके लिए हैं, बस धैर्य आपका मजबूत हो और उम्र लंबी। -
हल्का-फुल्का अप्रेजल का महीना: क्या हुआ तेरा वादा?
अप्रेजल के महीने में संस्थाओं के कर्मचारियों की उम्मीदें सातवें आसमान पर रहती हैं। हालांकि अप्रेजल की घोषणा होते ही उन्हें आसमान से जमीन पर उतरने में ज्यादा समय नहीं लगता। -
हल्का-फुल्का ये सब तो कहना ही पड़ता है: ‘महिला दिवस’ विशेषांक
महिलाओं की स्थिति वास्तव में बदले या ना बदले, लेकिन भाषणों की बड़ी-बड़ी बातें कभी नहीं बदलेंगी। सार्वजनिक मंचों पर उन बातों को दोहराना जरूरी है, जिनसे लगे कि सब ठीक चल रहा है। -
सरकार और समर्थन सरकार का बजट, संस्थाओं की कैसे मदद कर सकता है?
सरकार का बजट, संस्थाओं के लिए न केवल उसकी नीतियों को जानने का माध्यम है, बल्कि इससे उन्हें अपने कार्यक्रमों की प्लानिंग करने में भी मदद मिल सकती है। -
हल्का-फुल्का गणतंत्र दिवस पर दिल में देशभक्ति के अलावा और कौन-कौन से भाव आते हैं?
गणतंत्र दिवस पर स्कूल के बच्चों से लेकर शिक्षक, सरपंच और बाकी तमाम लोगों की चिंताओं की वजहें एक-दूसरे से एकदम अलग होती हैं। -
हल्का-फुल्का भारी प्रदूषण से बचने के कुछ हल्के-फुल्के उपाय!
प्रदूषण से जुड़े ये उपाय बचने के काम आएं या ना आएं, हंसने के काम जरूर आएंगे।