सुंदरबन में समुदाय द्वारा शिक्षा के लिए की गई एक सुंदर पहल
शिक्षा पाना हर एक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन क्या स्कूल चले जाने मात्र से ही वह हक उन्हें मिला जाता है? कोरोना महामारी जिसे पूरी दुनिया ने देखा है, उसी की मार भारत के उन बच्चों को सबसे अधिक झेलनी पड़ी जो देश के निम्न वर्ग से आते हैं। उनमें भी सबसे अधिक जो ग्रामीण व्यवस्था से आते हैं। जहां शिक्षा की सुविधा के नाम पर मात्र एक कमरा है। भले ही, आज हम डिजिटल और कंप्यूटर शिक्षा से जुड़ने का कितना भी दावा कर लें, लेकिन आज भी देश के भीतर एक बड़ा तबका, जो ग्रामीण व्यवस्था में है और वह इन सब से कोसों दूर है।
प्रॉमिस ओपन स्कूल एक ऐसा स्कूल है जो सुंदरबन (पश्चिम बंगाल, चौबीस परगना) के कुलतली ब्लॉक के भुबनेश्वरी गांव में है। इस स्कूल में कुल 75 बच्चे पढ़ने आते हैं, जहां इन्हें स्कूली शिक्षा के अलावा कम्प्यूटर भी सिखाया जाता है। आज पूरे सुंदरबन में इसी तरह के 11 स्कूल चल रहे हैं जिनसे कुल 620 बच्चे जुड़े हुए हैं।
प्रवीर मिश्रा सुंदरबन जन श्रमजीवी मंच से जुड़े हैं और इस स्कूल को अपनी पत्नी मधुमिता के साथ मिलकर चला रहे हैं। प्रवीर बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद जब एक साल तक स्कूल बंद रहे तो देखा कि बच्चों के ऊपर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी शिक्षा पर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। एक तो पहले से ही सरकारी स्कूल में शिक्षकों की कमी थी। यहां 150 बच्चों पर एक शिक्षक है और ऊपर से एक साल स्कूल बंद कर दिए गए।

इस स्कूल का आइडिया संगठन और सुमदाय के लोगों ने मिलकर सोचा। इसके लिए समुदाय के लोगों में से ही किसी ने अपने घर का आंगन तो किसी ने अपनी जमीन दान की, इन सभी स्कूलों में महिला शिक्षकों को प्राथमिकता दी गई। उनका कहना है कि महिलाएं ही बच्चों की सबसे अच्छे तरीके से देखभाल कर सकती हैं। इन सभी स्कूलों में आस-पास के सभी स्कूल जाने वाले बच्चे आते हैं। ये सभी सुबह 6:30 बजे आते हैं और 9.30 बजे वापस अपने (सरकारी) स्कूल में चले जाते हैं।
प्रॉमिस ओपन स्कूल में अंग्रेजी, विज्ञान, गणित के साथ-साथ कंप्यूटर भी सिखाया जाता है। इसे चलाने के लिये शुरुआत में लोगों से अपील की गई कि आप इसमें अपना सहयोग दें, इस अपील के बाद छह लोग (स्वेच्छा से) बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आये। कुछ लोगों ने पुराने कंप्यूटर और लैपटॉप भी दिए। लेकिन कुछ समय बाद इन शिक्षकों की जरूरतों को देखते हुए कुछ फैलोशिप शुरू किया गया, जिससे वो अपने काम को मजबूती से आगे बढ़ा सकें।
प्रवीर बताते हैं कि बच्चों में पढ़ने और आगे बढ़ने की रूचि बनी रहे इसके लिए वे हमेशा हर साल 12 जनवरी को युवा दिवस मनाते हैं। इसके लिए सभी बच्चे 11 जनवरी की शाम को एक साथ जुड़ते हैं, अगले दिन साथ मिलकर युवा दिवस मनाया जाता है, जिसके बाद सभी को एक स्टेशनरी का किट दिया जाता है, और स्कूल में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित भी किया जाता है। यह किट स्थानीय लोगों और जानने वाले मित्रों के सहयोग से ही जुटाए जाते हैं। कलकत्ता स्थित प्रॉमिस चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा भी बच्चों को स्टेशनरी और कुछ स्कूल टीचर को फैलोशिप दी जाती है, इसी तरह से प्रवीर और मधुमिता अपनी फैलोशिप से कुछ टीचर्स को सपोर्ट कर रहे हैं।
इसके साथ-साथ एक प्रवीर और मधुमिता के घर के पास एक कवच सेंटर बना है। इस सेंटर के लिए इन्होंने अपनी जमीन भी दान में दे दी। इस सेंटर की शुरुआत भी कोरोना महामारी के बाद की गयी थी, इस सेंटर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां आने वाले बच्चों की उम्र छह महीने से पांच साल तक की है। इस सेंटर को खोलने का आइडिया भी इसी तरह से आया। पश्चिम बंगाल के इस इलाके में हर घर के आस-पास अपने तालाब बने होते हैं, जिसका उनके जीवन में एक खास महत्व है। इस तालाब से हर कोई मछली पालन, सब्जी उगाने और घरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए करता है। साथ ही, अन्य जरूरतों के लिए पानी की व्यवस्था हो जाती है। लेकिन एकल परिवारों के लिए कहीं ना कहीं एक मुसीबत भी बन जाती है। सुंदरबन क्षेत्र में अधिकतर लोगों की आजीविका खेती, और मजदूरी पर निर्भर है। ऐसे परिवार भी हैं जहां पति और पत्नी दोनों को मजदूरी के लिए घर से बाहर जाना पढ़ता है। ऐसी परिस्थिति में कई बार उन्हें अपने बच्चों को घर पर अकेले ही छोड़ना पड़ता है। ऐसे ही कई एकल परिवारों के छोटे बच्चों की तालाब में डूबकर मरने की घटनाएं भी इस क्षेत्र में देखने को मिली हैं।
इन्हीं घटनाओं के कारण सुंदरबन वन श्रमजीवी संगठन के कार्यकर्ताओं ने एक सेंटर खोला जहां इन छोटे-छोटे बच्चों की देख-रेख की जाती है। कवच सेंटर पर इन मजदूर परिवारों के बच्चे आते हैं। सभी अभिभावक अपने बच्चों को सुबह यहां छोड़कर अपनी मजदूरी पर चले जाते हैं और दोपहर एक बजे वापस अपने बच्चों को लेकर जाते हैं। कवच सेंटर पर कुल 18 बच्चे आते हैं जिनकी देख-रेख के लिए पांच महिला टीचर हैं। ये सभी टीचर हैल्थ और प्री-एजुकेशन की ट्रेनिंग लेने के बाद ही इस सेंटर पर नियुक्त हुई हैं। महिलाओं की ट्रेनिंग सीआईएनआई (चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट) के द्वारा की जाती है। बच्चों को खेल के साथ-साथ कैसे शिक्षा दी जाए इस पर काफी ध्यान दिया गया है, सभी बच्चों को दोपहर का एक समय का भोजन (खिचड़ी) भी दिया जाता है।
ये दोनों ही स्कूल और सेंटर पूरी तरह से निशुल्क हैं। इसमें आने वाले सभी बच्चे मजदूर, छोटे किसान और मछुआरा परिवारों से आते हैं। इसका पूरा खर्च लोगों के सहयोग से चलाया जा रहा है, लेकिन सबसे बड़ा चैलेंज इन स्कूल और सेंटर में पढ़ाने और देखभाल करने वाले लोगों को जोड़े रखने का है।
अगर आप भी अपना सहयोग देना चाहते हैं तो इस ईमेल आईडी या फोन नंबर पर संपर्क कर और जानकारी ले सकते हैं।
ईमेल: prabirs24pga@gmail.com | मोबाइल नंबर: 9734357570
लेखक के बारे में
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महीपाल मोहन दिल्ली की संस्था श्रुति के साथ काम करते हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं।