फील्ड वर्कर के साथ, उनके मन की बात
“सुना है वहां इस बार सरकार गिरने वाली है?”
“वहां मेरी चाची की बुआ की बेटी के मौसा का भी एक एनजीओ है…आप कहें तो फोन लगाऊं?”
“छाता लेकर जाना। पिछले साल वहां इसी महीने बाढ़ आयी थी…”
“वापसी में घंटाघर वाले ठग्गू हलवाई से लड्डू जरूर लेते आना…”
“ऑल द बे….”
क्या आपके घर और दफ्तर में लोग अक्सर आपका बोरिया-बिस्तर देखकर इस तरह की बातें करने लगते हैं? क्या आप जून की भरी दुपहरी में दिल्ली छोड़कर राजस्थान जा रहे हैं? क्या वहां लोग आपसे जल्द-से-जल्द छुटकारा पाकर अपने काम पर लौटना चाहते हैं? क्या आपके लंबे-लंबे सवालों से किसी की फसल दुबारा पक कर गिर चुकी है? अगर इन सवालों का जवाब हां है, तो समझ जाइए कि आप फील्ड में उतर चुके हैं।
फील्ड में जाते समय हम और आप अपनी-अपनी तैयारी करते हैं। कभी अनजान लोगों को फोन कर उनसे मिलने का समय मांगते हैं, तो कभी जानने वालों को इसलिए फोन नहीं करते कि कहीं वो मिलने ही न आ धमकें। कभी एक-आध लोकल शब्द भी ठीक से नहीं बोल पाते हैं, तो कभी खाने के साथ प्याज न मिलने पर “टूरिस्ट समझा है क्या?” बोलते पाए जाते हैं।
इन सब बातों के बीच में होती हैं बहुत सी और बातें, जो इस बात से निकलती हैं कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। संस्थाओं से बातें। लोगों से बातें। समुदाय से बातें। परिवार से बातें। उनसे बातें। इनसे बातें। बातें ही बातें। इतनी बातें करने के बाद जब आप अकेले होते हैं, तो लगता है कि असल बात तो रह ही गयी। आप सोचेंगे कौन सी बात? हम बात कर रहे हैं आपकी। फील्ड वर्कर के मन की बात। जैसा मन में आए, वैसी बात। कुछ ऐसी बात:
1. जब आप फील्ड में दिन-रात एक कर रहे हों और मैनेजमेंट आपसे हर दिन एक नयी अपडेट मांगे:
2. जब आप सुबह 9 बजे की मीटिंग के लिए 7 बजे निकलें और 9:40 पर भी गूगल मैप्स पर गांव का रास्ता ही ढूंढ रहे हों:
3. जब आप और आपके साथी कहीं अपना लंबा-चौड़ा परिचय दे रहे हों, तब आपकी बात सुनने के लिए मजबूर लोगों की मनोदशा:
4. जब आप किसी संस्था से बार-बार उनकी चुनौतियां पूछें, पर बदले में सिर्फ सफलता के शिखर चूमती कहानियां ही हाथ आएं:
5. जब आप और आपके साथी फील्ड में एक महीना बिताने के बाद वहां की एक ऐतिहासिक इमारत देखने का समय निकाल पाएं:
6. जब आप थकान से चूर वापस लौटें और आते ही टीम मीटिंग में सब आपसे पूछें, “कैसा रहा फील्डवर्क?”
लेखक के बारे में
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अंजलि मिश्रा, आईडीआर में हिंदी संपादक हैं। इससे पहले वे आठ सालों तक सत्याग्रह के साथ असिस्टेंट एडिटर की भूमिका में काम कर चुकी हैं। उन्होंने टेलीविजन उद्योग में नॉन-फिक्शन लेखक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बतौर पत्रकार अंजलि का काम समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है।