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हल्का-फुल्का

पाताल लोक गाइड: जमीनी कार्यकर्ता विशाल आयोजनों में हिम्मत कैसे बनाए रखें

जब एक जमीनी कार्यकर्ता महानगर में आयोजित किसी ‘लग्जरी’ कार्यशाला में पहुंचता है तो मन खुद को ‘इंस्पेक्टर हाथीराम’ और आयोजन को 'पाताल लोक' सा महसूस करता है।
जमीन पर उदास बैठा एक आदमी_जमीनी कार्यकर्ता
७ फ़रवरी २०२५ को प्रकाशित

1. एक छोटे से गांव में काम करने वाला जमीनी कार्यकर्ता जब महानगर में आयोजित किसी बड़े से सेमिनार में शामिल होने पहुंचे।

हाथीराम कहता है: "हम गली-क्रिकेट के लौंडे हैं चौधरी और यहां वर्ल्ड कप चल रहा है"_जमीनी कार्यकर्ता

2. जब एक जमीनी कार्यकर्ता संस्था का फंड बचाने के लिए सेमिनार में ट्रेन या फ्लाइट की बजाय बस से पहुंचे।

हाथीराम फोन पर: यह सिस्टम एक नाव की तरह है चौधरी, सबको पता है कि इसमें छेद है और तू उनमें से है, जो नाव को बचाने की कोशिश कर रहा है_जमीनी कार्यकर्ता

3. सेमिनार में पहुंचने के बाद पता चले कि दिन में 12 सेशन हैं और मैनेजर ने सारे सेशन अटैंड करने का आदेश दिया है।

हाथीराम दूसरे आदमी से कहते है: अरे क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमें जान चली जाए, तू ही बात क्या मैं गलत कह रहा हूं_जमीनी कार्यकर्ता

4. सेमिनार के लंबे सेशन के बाद आखिरकार जब लंच का समय हो जाए और खाने के स्टॉल पर बहुत भीड़ हो।

हाथीराम कहते है: तू चिंता मत कर, मैं पाताल लोक का परमानेंट निवासी हूं_जमीनी कार्यकर्ता

5. लंच के बाद सेमिनार से एक-एक कर सदस्य गायब होने लगें और आप भी निकलने की तैयारी में हों।

हाथीराम एक आदमी से कहते है: कोई है मैडम जो इस केस की गोटियां गायब कर रहा है। मेरा तजुर्बा है कि ऐसे टाइम पर या तो आप नौकरी कर लो या ड्यूटी कर लो_जमीनी कार्यकर्ता

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