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कॉन्वेंट में पढ़कर भी तुम्हें सोशल सेक्टर में काम करना है, क्यों कॉन्वेंट में पढ़कर भी तुम्हें सोशल सेक्टर में काम करना है, क्यों?
1. मास्टर्स डिग्री के साथ, परिवार की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी सदस्य होने के बावजूद जब मैंने ये कहा कि मैं कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर सोशल सेक्टर में जाना चाहती हूं।
मेरी मां:

मेरे पिता:

2. कई लंबे-लंबे भाषणों के बाद कि “तू तो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी है, हम तो स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़े थे”, “तुझे तो सब कुछ थाली में मिला है” और “इन सबमें कितना ही कमा पाओगी?”
उनकी प्रतिक्रिया, जब उन्हें अपनी तनख्वाह बताती हूं:

3. जब मैंने डरते-डरते अपने भाई को बताया कि मेरी नौकरी में हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है।
मन ही मन खुश होते हुए कि अब तो मैं ही मम्मी-पापा का पसंदीदा बच्चा हूं,

4. जब मैं उन्हें बताती हूं कि मैं भारत की जमीनी हकीकत और उन मुद्दों के बारे में सीख रही हूं, जिनकी बात आमतौर पर मीडिया में नहीं होती है।
पापा मेरी बातों को अनसुना करते हुए, किसी ऐसे कजिन की बात छेड़ देते हैं, जो दूसरी जाति में शादी कर रहा है:

5. जब सोशल सेक्टर के शब्द (जार्गन) मेरी रोज की बातों में आने लगें – जैसे जब मैंने कहा कि बिजली कम खर्च करने से हमारा कार्बन फुटप्रिंट कम होगा।
मां जो मुझे जब-तब लाइट-पंखे बंद करने के लिए डांट लगाती रहती हैं:

6. जब परिवार मेरी नौकरी को लेकर थोड़ा सहज होने लगे और किसी शाम रिश्तेदारों को भी इस बारे में समझाने की कोशिश करे कि मैं असल में करती क्या हूं। लेकिन लौटने पर वे खुद ही कई सवालों में उलझ जाते है।
मेरे पिता जो बस एक बढ़िया शाम चाहते थे:

7. जब मैं उन्हें बताती हूं कि हमारी कहानियों से किस तरह का असर पड़ता है, तो वह उन्हें गर्व से अपने फेसबुक ग्रुप में शेयर करने लगते हैं। यह सब तब बढ़िया लगता है, जब तक मां-पापा के बीच झगड़ा न हो जाए।
“मेरी बेटी मुझ पर गई है, तुझ पर नहीं।”

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
लेखक के बारे में
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सृष्टि गुप्ता आईडीआर में एक सम्पादकीय विश्लेषक हैं और लेख लिखने, सम्पादन और अनुवाद से जुड़े काम करती हैं। इससे पहले सृष्टि ने स्प्रिंगर नेचर में संपादन से जुड़ा काम किया है। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए किया है और लिंग, सामाजिक न्याय, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर शोध करने में रुचि रखती हैं।