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नेतृत्व और हुनर

बेहतरी के लिए सीखना: लर्निंग और डेवलपमेंट के आयाम

विकास सेक्टर में लर्निंग और डेवलपमेंट की क्या उपयोगिता है और इसकी वर्तमान स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कौन से कदम उठाये जा सकते हैं।
जमीन पर बैठकर चर्चा करते कुछ लोग_ लर्निंग और डेवलपमेंट
१३ अगस्त २०२५ को प्रकाशित

भारत में हजारों गैर-लाभकारी संगठन (एनजीओ) और सामाजिक संस्थाएं सक्रिय रूप से काम कर रही हैं, जहां लाखों लोग समाज के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। इन प्रयासों के बीच, उन्हें अपने कार्यक्षेत्र की खास जरूरतों के अनुरूप अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर—कभी उन्हें किसी मुद्दे से जुड़े तकनीकी कौशल में दक्षता हासिल करनी होती है, तो कभी अपने काम का सटीक और व्यवस्थित दस्तावेजीकरण करना पड़ता है। इसके साथ ही, जिन समुदायों के साथ वे काम करते हैं, उनकी स्थानीय जटिलताओं को गहराई से समझना भी आवश्यक होता है।

ये चुनौतियां केवल किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं हैं। इनका प्रभाव पूरी संस्था पर पड़ता है और ये समूचे विकास सेक्टर को प्रभावित करती हैं। ऐसे में कोई नयी चीज सीखकर खुद को बेहतर बनाना, जिसे अमूमन अंग्रेजी में ‘लर्निंग और डेवलपमेंट’ कहा जाता है, इन चुनौतियों से निपटने का एक सशक्त तरीका हो सकता है। कुछ सीखने की यह प्रक्रिया केवल नई जानकारी अर्जित करने तक सीमित नहीं होती। यह आपके काम के तरीकों, दृष्टिकोण और व्यवहार में निरंतर सुधार लाने का माध्यम भी होती है। जब व्यक्ति और संस्थाएं नियमित रूप से कुछ-न-कुछ सीखते हैं, तो इससे न केवल उनका व्यक्तिगत विकास होता है, बल्कि वे अधिक समावेशी, संवेदनशील और प्रभावी ढंग से समाज में बदलाव लाने में सक्षम होते हैं।

एटीई चंद्रा फाउंडेशन की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि जब सामाजिक संस्थाएं अपने कार्यकर्ताओं के लिए ‘लर्निंग और डेवलपमेंट’ में सुनियोजित निवेश करती हैं, तो उसका असर केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं रहता। यह न केवल कर्मचारियों की क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है, बल्कि पूरी संस्था की प्रभावशीलता में भी सुधार लाता है, जिससे वह अपने उद्देश्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर पाती है। यह लेख इस रिपोर्ट में साझा की गई महत्वपूर्ण जानकारियों और विकास क्षेत्र में हमारे प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर, सामाजिक संस्थाओं के लिए ‘लर्निंग और डेवलपमेंट’ के महत्व को समझने का एक प्रयास है।  

क्या है लर्निंग और डेवलपमेंट की प्रक्रिया?

सीखने और क्षमता-विकास की प्रक्रिया (लर्निंग और डेवलपमेंट) में ऐसे कार्यक्रम और गतिविधियां शामिल हैं, जो किसी व्यक्ति या संस्था को एक तयशुदा और सुव्यवस्थित ढांचे के तहत उनके ज्ञान, कौशल और कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। जैसे किसी भी अन्य पेशेवर क्षेत्र में होता है, वैसे ही सामाजिक विकास के क्षेत्र में भी लोग अलग-अलग भूमिकाओं में काम करते हैं। इन भूमिकाओं का निर्धारण उनकी विशेषज्ञता और कौशल के आधार पर होता है। लेकिन इन भूमिकाओं में सफल होने और आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है कि वे लगातार सीखते रहें और अपनी क्षमताओं को निखारते रहें। ऐसे में यह प्रक्रिया न केवल व्यक्तिगत विकास में मददगार होती है, बल्कि संस्था के भीतर भावी नेतृत्व (सेकंड लाइन लीडरशिप) को तैयार करने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जमीन पर बैठकर चर्चा करते कुछ लोग_ लर्निंग और डेवलपमेंट
अधिकांश संस्थाओं में या तो लर्निंग और डेवलपमेंट की गहरी समझ अभी विकसित नहीं हो पाई है, या फिर इसे बस एक औपचारिकता के रूप में देखा जाता है। | चित्र साभार: अनस्पलैश

इसे एक काल्पनिक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए, किसी संस्था में एक कर्मचारी हैं, जो एक्जीक्यूटिव की भूमिका में फील्ड में समुदाय के साथ काम करते हैं। वे लोगों के बीच सहज महसूस करते हैं और समुदाय के सदस्य भी उनसे खुलकर अपनी बातें साझा करते हैं। लेकिन जब फील्ड के अनुभवों और घटनाओं को लिखित रिपोर्ट में बदलने की बात आती है, तो उन्हें कठिनाई होती है। वहीं, उनके प्रबंधक रिपोर्टिंग और दस्तावेजीकरण में माहिर हैं, लेकिन फील्ड अनुभव और मुद्दों की सीमित समझ होने के कारण वे कर्मचारी की बातों को पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं।

इसका नतीजा यह होता है कि टीम की पूरी मेहनत के बावजूद, न तो प्रबंधक कर्मचारी के काम का सही मूल्यांकन कर पाते हैं, न संस्था के दस्तावेजों में फील्ड के काम का सही आकलन हो पाता है और न ही समुदाय की वास्तविक जरूरतें स्पष्ट रूप से सामने आ पाती हैं।

ऐसी स्थिति में, अगर उस कर्मचारी को रिपोर्टिंग और दस्तावेजीकरण की समझ विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और प्रबंधक को फील्ड के मुद्दों और समुदाय की जमीनी वास्तविकताओं की गहरी समझ दिलाने के लिए सीखने के अवसर प्रदान किए जाएं, तो दोनों की क्षमताएं संतुलित रूप से विकसित होंगी। इस तरह की सीख और क्षमता-विकास की प्रक्रियाएं न केवल व्यक्तिगत और संस्थागत प्रदर्शन को बेहतर बनाती हैं, बल्कि विकास सेक्टर के प्रयासों को भी अधिक समावेशी और समुदाय-केंद्रित बनाती हैं।

सेक्टर में लर्निंग और डेवलपमेंट की मौजूदा स्थिति

सामाजिक विकास के क्षेत्र में अभी लर्निंग और डेवलपमेंट की अवधारणा अपेक्षाकृत नई है। अधिकांश संस्थाओं में या तो इस विषय की गहरी समझ अभी विकसित नहीं हो पाई है, या फिर इसे बस एक औपचारिकता के रूप में देखा जाता है। नतीजतन, संस्थाओं के बजट में भी इसे अक्सर प्राथमिकता नहीं मिलती। एक और चुनौती यह है कि संस्थाओं को अपनी वास्तविक जरूरतों के अनुरूप, उपयुक्त सीख और क्षमता-विकास कार्यक्रम ढूंढने में भी कठिनाई होती है।

उक्त रिपोर्ट 30 अलग-अलग लर्निंग और डेवलपमेंट कार्यक्रमों में शामिल 357 प्रतिभागियों के सर्वे पर आधारित है। इन प्रतिभागियों में संस्थाओं के शुरुआती स्तर से लेकर मध्यम और शीर्ष स्तर तक के लोग शामिल थे। रिपोर्ट से कुछ अहम बातें सामने आती हैं:

  • इन कार्यक्रमों में सबसे अधिक भागीदारी शीर्ष प्रबंधन के लोगों की थी।
  • मध्यम स्तर पर काम करने वालों को ये प्रक्रियाएं सबसे अधिक सहायक लगी, लेकिन उनकी भागीदारी इसमें सबसे कम रही।
  • शुरुआती स्तर के कर्मचारियों को संसाधनों की उपलब्धता में सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  • कार्यक्रमों में शामिल होने वाले कई लोगों को इस बात की स्पष्ट समझ नहीं थी कि इन प्रक्रियाओं से उन्हें क्या हासिल होगा।

यह साफ है कि एक नई अवधारणा होने के कारण लर्निंग और डेवलपमेंट की प्रक्रियाओं में अभी बहुत सुधार की गुंजाइश है। लेकिन उतना ही आवश्यक है कि संस्थाएं भी इन्हें लेकर सजग और गंभीर हों, ताकि इनका लाभ हर स्तर पर पहुंच सके। इसके लिए जरूरी है कि संस्थाएं इन प्रक्रियाओं को “अतिरिक्त सुविधा” नहीं, बल्कि अपने काम का एक अभिन्न हिस्सा मानें। यह समझ विकसित करनी होगी कि इन प्रक्रियाओं में किया गया निवेश संस्थागत मजबूती, बेहतर परिणाम और समुदाय के साथ बेहतर जुड़ाव की नींव बन सकता है। इसका मतलब है शुरुआत से ही बजट में इनके लिए स्पष्ट प्रावधान करना, कर्मचारियों के लिए इन अवसरों को सुलभ और प्रासंगिक बनाना तथा हर स्तर (शुरुआती, मध्यम और शीर्ष प्रबंधन) के लिए इन्हें समान महत्व देना।

लर्निंग और डेवलपमेंट का सही इस्तेमाल कैसे हो?

किसी भी संस्था में लर्निंग और डेवलपमेंट को केवल कर्मचारी के व्यक्तिगत विकास के तौर पर नहीं, बल्कि पूरी संस्था की सामूहिक जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। जब लोग ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं, तो वे केवल नई चीजें नहीं सीखते, बल्कि अन्य संस्थाओं के लोगों से भी जुड़ते हैं। यह मुलाकातें नेटवर्किंग के नए रास्ते खोलती हैं।

लर्निंग और डेवलपमेंट केवल कौशल बढ़ाने का जरिया नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव तय करने वाला अहम साधन है।

इस संवाद के माध्यम से अनुभवों का आदान-प्रदान होता है, नई तकनीकों और तरीकों की जानकारी मजबूत बनती है और पूरे सेक्टर में एक-दूसरे से सीखने की भावना को बल मिलता है। इससे न केवल प्रतिभागियों का आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि नेतृत्व क्षमता भी मजबूत होती है।

इस पूरी प्रक्रिया के तीन प्रमुख हिस्सेदार हैं: 

  • प्रशिक्षण व लर्निंग कार्यक्रम संचालित करने वाले संस्थान: प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों के लिए जरूरी है कि वे कार्यक्रम को इस तरह तैयार करें कि वह केवल व्यक्तिगत कौशल तक सीमित न रहे, बल्कि नेतृत्व क्षमता, टीम-वर्क, आपसी सहयोग और मुद्दों की गहरी समझ को भी मजबूती दे। अलग-अलग भूमिकाओं में काम करने वालों की जरूरतें भी अलग होती हैं। इसलिए कार्यक्रम की डिजाइनिंग में इस विविधता को ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही, प्रशिक्षण खत्म होने के बाद भी प्रतिभागियों के लिए निरंतर संसाधन, मार्गदर्शन और सहयोग सुनिश्चित हो, इस पर भी काम होना चाहिए।
  • एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं: सामाजिक संस्थाएं अपने फंड प्रदाताओं से बात करके यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि संस्थागत विकास के तहत लर्निंग और डेवलपमेंट में निवेश को प्राथमिकता मिले। बजट बनाते समय इसके लिए समय, ऊर्जा और संसाधनों को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जा सकता है, ताकि यह केवल एक अतिरिक्त गतिविधि न होकर काम का एक अहम हिस्सा बन पाए।
  • वित्तीय सहयोग देने वाले फंड प्रदाता: फंड देने वाली संस्थाओं के लिए भी यह सोचने का समय है कि वे हर प्रोजेक्ट के बजट का एक तय हिस्सा (जैसे 10%) लर्निंग और डेवलपमेंट के लिए अलग रखें। इससे छोटी-बड़ी, दोनों तरह की संस्थाओं को इन प्रक्रियाओं का लाभ मिलेगा, खासकर वे जिनके पास इस दिशा में अनुभव या संसाधनों की कमी है। बदलाव में निवेश करने वाली संस्थाएं नतीजों की अपेक्षा तो करती ही हैं, लेकिन यह भी जरूरी है कि वे महज साक्ष्यों और परिणामों से आगे बढ़कर प्रक्रियाओं में निवेश करें। उनका यह निर्णय भविष्य में बड़े बदलाव की नींव बन सकता है।

इन तीनों सहभागियों की सामूहिक सोच और प्रयास ही इन गतिविधियों को सार्थक और असरदार बना सकते हैं। लर्निंग और डेवलपमेंट केवल व्यक्तिगत या संस्थागत कौशल बढ़ाने का जरिया नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की गति और दिशा तय करने वाला अहम साधन है। हमारे जैसे असमानताओं से भरे समाज में, जहां शिक्षा और संसाधनों तक समान पहुंच में गहरा अंतर है, ऐसे अवसर जमीनी स्तर पर काम करने वालों के लिए बहुत मायने रखते हैं। जब संगठन इन प्रक्रियाओं को अपनाते हैं, तो वे न सिर्फ अपनी टीम की क्षमताओं को मजबूत करते हैं, बल्कि विविध नेतृत्व, समावेशी सोच और व्यापक प्रतिनिधित्व के रास्ते भी खोलते हैं। ऐसे रास्ते जो बदलाव को केवल संभव ही नहीं, बल्कि टिकाऊ और दूरगामी भी बनाते हैं।

अधिक जानें

  • इस लेख से समझिए टीम के सदस्यों के लिए लर्निंग और डेवलपमेंट का महत्व।
  • जानिए फिलन्थ्रॉपी और सामाजिक न्याय के संबंध को।
  • जानें कि विकास सेक्टर में पीयर लर्निंग की सरल व्याख्या क्या है।