IDR English

अधिक भाषाएँ

  • मराठी
  • ગુજરાતી
  • বাংলা
सामाजिक न्याय

घुमंतू और विमुक्त जनजाति के युवाओं के लिए सामाजिक न्याय

एनटी-डीएनटी एक्टिविस्ट और अनुभूति संस्था की संस्थापक, दीपा पवार से सुनिए कि सामाजिक न्याय के व्यावहारिक प्रयास कैसे होने चाहिए।
घुमंतू समुदाय की एक लड़की_सामाजिक न्याय
१० मार्च २०२५ को प्रकाशित


विधि – सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के पॉडकास्ट द फेमिनिस्ट सिटी के इस एपिसोड में (एंकर) स्नेहा विशाखा अनुभूति ट्रस्ट की संस्थापक-निदेशक दीपा पवार के साथ बातचीत कर रही हैं। यहां वे अलग-अलग तबके से आने वाले शहरी युवा और शहर में लड़कियों और महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर बात कर रही हैं। इस बातचीत में उन्होंने घुमंतू और विमुक्त जनजाति जैसे वंचित समुदायों की चुनौतियों पर भी बात की है। यहां पर दीपा राइट टू पी कैंपेन का भी ज़िक्र करती हैं और यह भी बताती हैं कि वर्तमान शहरी ढांचा और उसकी कमियां किस तरह से हिंसा, अलगाव और अन्याय को बढ़ाती हैं। इस पॉडकास्ट में उन्होंने शहरी विकास की राजनीति पर भी विचार व्यक्त किए हैं और बताया है कि शहर को बसाने वाले और इसकी हालिया व्यवस्था से फायदा उठाने वाले लोग कौन हैं। यहां पर संवैधानिक ढांचे में मौजूद सामाजिक न्याय के ज़रूरी पहलू के तौर पर मानसिक न्याय पर भी बात की गई है।

यह आलेख मूलरूप से विधि लीगल पॉलिसी पर प्रकाशित हुआ था।