‘इम्पैक्ट पर ज़ोर नहीं, कैसे दिखाएं डेटा ग़ालिब’
मिर्ज़ा असतुल्लाह खां ग़ालिब यानी चचा ग़ालिब, अपनी शायरी के साथ-साथ अपने ज़माने में, अपनी तरह से इतिहास को दर्ज करने के लिए भी जाने जाते हैं। लेकिन अब वो नहीं हैं और इतिहास भी दूसरी तरह से लिखा जा रहा है, और दोनों बातों पर हमारा कोई ज़ोर नहीं है। हां, चचा ग़ालिब की नज़र से दुनिया को देखने के अलावा, हम इतना ज़रूर कर सकते हैं कि डेवलपमेंट सेक्टर के कुछ शब्दों के मायने आपको समझा दें।
वैसे तो, हम यह काम सरल कोश में करते हैं लेकिन इस बार हमने चचा ग़ालिब से मदद ली है।
जलवायु परिवर्तन
बढ़ रहा है साल दर साल टेम्परेचर ग़ालिब
कहीं सूखा पड़ा तो कहीं बाढ़ आयी है
फ़िलैन्थ्रॉपी
गुडविल ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वरना अपनी सात पुश्तों के इंतज़ाम थे
सस्टेनिबिलिटी
इंटरवेंशन को चाहिए इक उम्र असर होने तक
क्या ही टिकता है इरादा, रीसाइकल-रियूज़ होने तक
मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन
हमको मालूम है मॉनिटरिंग में ही हक़ीक़त लेकिन
दिल को बहलाने को इवैल्यूएशन कर लेना अच्छा है
फंडिंग
न था कुछ तो एफसीआरए था, कुछ ना होता तो रिटेल फंडिंग थी
डुबोया मुझको लाइसेंस खोने ने, ना होता एनजीओ तो फॉर प्रॉफ़िट होता
इम्पैक्ट
इम्पैक्ट पर ज़ोर नहीं, कैसे दिखाएं डेटा ग़ालिब
ज़मीं पे मिले, लेकिन काग़ज़ पे दिखाई न पड़े
लेखक के बारे में
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अंजलि मिश्रा, आईडीआर में हिंदी संपादक हैं। इससे पहले वे आठ सालों तक सत्याग्रह के साथ असिस्टेंट एडिटर की भूमिका में काम कर चुकी हैं। उन्होंने टेलीविजन उद्योग में नॉन-फिक्शन लेखक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बतौर पत्रकार अंजलि का काम समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है।