एनजीओ में काम करने वालों का… दरद ना जाने कोय
विकास सेक्टर में काम करने वालों को लेकर परिवार, समाज और बाक़ी लोगों की सोच और उनके सच में कितना अंतर होता है।
१५ दिसंबर २०२३ को प्रकाशित
विकास सेक्टर में काम करने वाले कभी अपने काम के बारे में एक शब्द या एक लाइन में नहीं बता पाते हैं। लंबा और विस्तार से समझाने के बाद भी आसपास ऐसी ही लोग ज़्यादा दिखते हैं जिनको यह पता नहीं चलता कि वे करते क्या हैं। ऐसी ही कुछ दुविधाओं का ज़िक्र नीचे हैं, उम्मीद है कि इन उदाहरणों में से बहुत कम आपके हिस्से आए हों। (लेकिन ऐसा होगा नहीं, ये आपको भी पता है, है न!)
1. जो फंडर को आसान लगता है, वो हमको बहुत ज़ोर से लगता है… आह!
सोच

सच

2. सरकार को हम जो दिखाना चाहते हैं, वह उसके अलावा सबकुछ देखती है…क्यों? क्यों? क्यों?
सोच

सच

3. दोस्त ने बस ये पूछा था कि मैं करता क्या हूं… और मैं –
सोच

सच

4. आपके आसपास, मुहल्ले-पड़ोसियों और समाज वालों की नज़र में
सोच

सच

5. जब मैनेजर काम बताए तब –
सोच

सच

6. ‘आख़िर तुम करते क्या हो?’ का सही जवाब –
सोच

सच

लेखक के बारे में
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राकेश स्वामी आईडीआर में सह-संपादकीय भूमिका मे हैं। वह राजस्थान से जुड़े लेखन सामग्री पर जोर देते है और हास्य से संबंधित ज़िम्मेदारी भी देखते हैं। राकेश के पास राजस्थान सरकार के नेतृत्व मे समुदाय के साथ कार्य करने का एवं अकाउंटेबलिटी इनिशिएटिव, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च मे लेखन एवं क्षमता निर्माण का भी अनुभव है। राकेश ने आरटीयू यूनिवर्सिटी, कोटा से सिविल अभियांत्रिकी में स्नातक किया है।