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लिंग

लैंगिक भूमिकाओं पर काम करते हुए मैंने समानता का असली मतलब समझा

लैंगिक भूमिकाओं पर काम करते हुए मैंने समानता का असली मतलब समझा_लैंगिक असमानता
२२ नवंबर २०२३ को प्रकाशित

मेरा नाम मनोज कुमार है और मैं हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी गांव का रहने वाला हूं। मैंने जो जीवन जिया उसके बड़े हिस्से में मुझ पर पुरुषवादी सोच पूरी तरह से हावी रही। मैं हमारे आस-पास की सामाजिक सोच में मैं पूरी तरह ढला हुआ था।

जब मैं विकास सैक्टर से जुड़ा, तब मेरे इस व्यवहार में कुछ बदलाव आए। सबसे पहले मैंने जे-पाल नाम की समाजसेवी संस्था के साथ सर्वे करने का काम किया जो कि लैंगिक भेदभाव पर था। उसके बाद मैं ब्रेकथ्रू संस्था से जुड़ा जहां मेरी पितृसत्तामक सोच व लैंगिक भेदभाव पर बहुत चर्चा और ट्रेनिंग हुई। ये काम करना भी उस समय मेरे लिए महज़ एक नौकरी थी। मैं लिंग आधारित रूढ़िवादी भूमिकाओं में विश्वास करता था लेकिन जैसे-जैसे मैं ये काम करता जा रहा था, मुझे समझ आने लगा कि मैं कहां गलत हूं। अब मैं अपनी ग़लतियों को सुधारने की पूरी कोशिश कर रहा हूं। शुरूआत में तो मेरे साथियों, पड़ोसियों और तमाम लोगों ने मुझ में आए इस बदलाव को लेकर मेरा मज़ाक बनाया। लेकिन अब धीरे-धीरे मेरे जैसी सोच के लोग भी मुझसे जुड़े लगे हैं। कुछ दोस्त मुझे ब्रेकथ्रू कहकर बुलाते हैं, शायद इसलिए क्योंकि मैं पुरानी रवायतों को तोड़ता हूं।

अधिक जानें: जानें कैसे परिवार नियोजन पितृसत्ता से लड़ने का ज़रिया बन सकता है।

अधिक करें: लेखक के काम को विस्तार से जानने और उन्हें अपना समर्थन देने के लिए उनसे manojk@inbreakthrough.org पर संपर्क करें।

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