ट्रांसजेंडर महिलाएं क्यों रह जाती हैं बेरोज़गार
ज्योत्सना एक ट्रांसजेंडर है और दिल्ली के वज़ीरपुर इलाके में रहती हैं। उनका पूरा दिन अपनी आजीविका चलाने के लिए ट्रैफ़िक सिग्नल पर लोगों से पैसे मांगने में बीत जाता है। वे थोड़ी अतिरिक्त कमाई के लिए आसपास के इलाक़ों के उन घरों में चली जाती हैं जहां शादी-ब्याह या बच्चे के जन्म पर कोई आयोजन हो रहा हो।
ट्रांस समुदाय के बाक़ी लोगों की तरह ज्योत्सना को भी कोई औपचारिक रोज़गार नहीं मिल पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि वे अपनी शैक्षणिक योग्यता को प्रमाणित नहीं कर सकती हैं। पारिवारिक दुर्व्यवहार के कारण 2003 में उन्हें अपना गाज़ियाबाद वाला घर छोड़ना पड़ा। परिणामस्वरूप, 10वीं तक पढ़ाई करने के बावजूद उनके पास इससे जुड़े दस्तावेज नहीं हैं कि वे नौकरी के लिए इन्हें दिखा सकें।
हालांकि, ज्योत्सना को लगता है कि उनकी यह बेरोज़गारी कई वजहों से है। वे कहती हैं कि “देखिए, ‘मैट्रिक पास’ होना एक चीज़ है। नौकरी देने वाले लोग हमें देखते हैं और फिर काम पर रखने से मना कर देते हैं। यहां तक कि पिछड़े समुदायों द्वारा किए जाने वाले छोटे-मोटे काम भी हमें नहीं मिलते हैं क्योंकि हम दिखने में अलग हैं।”
आम आबादी में जहां 75 फ़ीसदी लोगों को साल भर में छह महीने से अधिक समय के लिए काम मिल पाता है, वहीं ट्रांस समुदाय में यह आंकड़ा केवल 65 फ़ीसदी है। ट्रांस लोगों के साथ उनके ‘स्त्रैण व्यवहार’, समाज में ट्रांस दर्जे, यौन व्यापार के साथ वास्तविक या कथित जुड़ाव, उनके एचआईवी संक्रमित होने से जुड़ी सच्ची-झूठी धारणाएं, कपड़े पहनने का तरीका और शारीरिक रूप-रंग सरीखी कई बातें जुड़ी होती हैं। इन्हीं के कारण उन्हें अपने परिवारों, पड़ोसियों, समुदायों और सार्वजनिक और निजी संस्थानों द्वारा अलग-अलग तरह से किए जाने वाले भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
अजान एक ट्रांस पुरुष हैं। वे ट्वीट फ़ाउंडेशन के दक्षिण दिल्ली शेल्टर के प्रबंधक के तौर पर काम करते हैं। यह ट्रांस लोगों द्वारा संचालित एक समुदायिक संगठन है। अजान का अपना अनुभव यह कहता है कि ट्रांस महिलाओं के लिए रोज़गार खोजना कहीं ज्यादा मुश्किल है क्योंकि पसंद से ‘स्त्रीत्व’ के चुनाव को बड़ा ‘विचलन’ माना जाता है। इसलिए एक ट्रांस पुरुष के तौर पर समाज में हाशिए पर होने के बावजूद रोज़गार हासिल करने की उनकी संभावनाएं किसी ट्रांस महिला की तुलना में अधिक होती हैं।
अन्वेशी गुप्ता ने हक़दर्शक में विकास और प्रभाव के लिए सहायक प्रबंधक के रूप में काम किया है। हर्षिता छतलानी हक़दर्शक की जूनियर रिसर्चर और कंटेंट क्रिएटर हैं। यह मूलरूप से हकदर्शक के ब्लॉग पर प्रकाशित एक लेख के संपादित अंश हैं।
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लेखक के बारे में
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अन्वेशी गुप्ता हक़दर्शक में विकास और प्रभाव के लिए सहायक प्रबंधक थीं, इससे पहले वे नीति आयोग, भारत सरकार में एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम से जुड़ी थीं। मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय और सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से स्नातक अन्वेशी के पास अंतरराष्ट्रीय विकास क्षेत्र में पांच साल से अधिक का पेशेवर अनुभव है। वे विश्व बैंक की ग्रेजुएट स्कॉलर 2022 हैं। जल्द ही वे ससेक्स विश्वविद्यालय से पर्यावरण (विकास और नीति) में मास्टर की पढ़ाई शुरू करने जा रही हैं।
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हर्षिता छतलानी हक़दर्शक में एक वरिष्ठ सहयोगी (संचार-विकास) हैं। पत्रकारिता और मार्केटिंग में अनुभव के साथ, हर्षिता वर्तमान में पॉलिसी रिसर्च और कंटेंट पर काम कर रही हैं। उन्होंने लिंग, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों, यौन हिंसा और विकलांग व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों पर भी व्यापक रूप से काम किया है। वे द सेफ स्पेस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करती हैं जो लिंग आधारित हिंसा से बचे लोगों को साथ और पेशेवर मदद प्रदान करता है।